शिक्षा में समानता का अधिकार। शैक्षिक अवसरों में समानता का अधिकार

शिक्षा में समानता का अधिकार

शैक्षिक अवसरों की समानता (शिक्षा में समानता का अधिकार) का अर्थ एवं परिभाषा 

समानता का अर्थ अनेक रूपों में किया जाता है। सामान्यतः समानता से तात्पर्य राज्य द्वारा व्यक्तियों की शिक्षा के सन्दर्भ में जाति, रुप, रंग, प्रान्तीयता एवं भाषा-धर्म आदि के मध्य भेदभाव न करने से है। शिक्षा के क्षेत्र में समानता का आशय सभी के लिए एक समान शिक्षा नहीं है बल्कि प्रत्येक बालक की शारीरिक, मानसिक, सांवैगिक, नैतिक परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा को प्रासंगिक बनाना है। 

शिक्षा के अवसरों की समानता से आशय है सभी बालकों को शिक्षा प्राप्त करने की समान सुविधाएँ तथा अवसर प्राप्त होना। कोठारी शिक्षा आयोग ने लिखा है शिक्षा का महत्वपूर्ण सामाजिक उद्देश्य है- अवसर की समता प्रदान करना जिससे पिछड़े तथा दलित वर्ग और व्यक्ति शिक्षा के द्वारा अपनी स्थिति सुधार सकें। जो भी समाज सामाजिक न्याय को अपना आदर्श मानता है और आम आदमी की हालत सुधारने तथा सारे शिक्षा पाने योग्य व्यक्तियों को शिक्षा देने के उत्सुक है उसे यह व्यवस्था करनी ही होगी कि जनता के सब वर्गों को अवसर की अधिकाधिक समता प्राप्त होती जाये। एक समतामूलक और मानवता-मूलक समाज जिसमें कमजोर का शोषण कम से कम हो, बनाने का यही एक सुनिश्चित साधन है। 

>>माध्यमिक शिक्षा के उद्देश्य का वर्णन 

भारत में शैक्षिक अवसरों की समानता की आवश्यकता एवं महत्व

भारत में शैक्षिक अवसरों की समानता नहीं है। एक धनी व्यक्ति के बालक पब्लिक स्कूल में पढ़ते हैं तो एक निर्धन व्यक्ति अपने बालक को साधारण विद्यालय में भी नहीं भेज पाता। जिन स्थानों पर प्राथमिक, माध्यमिक या कॉलेज की शिक्षा देने वाली संस्थाएँ नहीं हैं वहाँ के बालकों को वैसा अवसर नहीं मिल पाता जैसा उन बच्चों को मिलता है जिनकी बस्तियों में यह संस्थाएँ होती हैं। भारत में आज भी अनेक ग्राम ऐसे हैं जहाँ विद्यालय नहीं हैं। वहाँ के बालकों को किसी प्रकार की शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। निर्धनता भी शैक्षिक अवसरों की समानता में बाधक है। एक निर्धन व्यक्ति अपने बालक को उच्च शिक्षा प्राप्त करने नहीं भेज पाता। परन्तु धनी व्यक्ति के पुत्र-पुत्रियाँ विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं। 


भारत समाज में शैक्षिक विषमताओं(असमानता) के कारण 

भारतीय समाज में शैक्षिक असमानता के निम्नलिखित कारण बताये जाते हैं-

 1. निर्धनता- भारतीय समाज में निर्धनता की समस्या शिक्षा की समानता में सबसे बड़ी बाधा है। 

2. अवसर का अभाव- जैसे किसी क्षेत्र में विद्यालय या कॉलेज का न होना।

3. स्तर में अन्तर- विभिन्न स्कूलों से आये बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि में अन्तर होता है और उनके मूल्यांकन के समान स्तर का पता नहीं चलता। सबके मापदण्ड अलग हैं। 

4. वातावरण- बालकों के परिवारों में भिन्न जीवन स्तर होता है। लड़कियों के भेदभाव की स्थिति, नगरीय व ग्रामीण वातावरण शिक्षा में असमानता के कारक बनते हैं। 

5. सामाजिक स्तरीकरण- भारतीय समाज बेहद स्तरीकृत है। जाति-प्रणाली इसका ढाँचा है। यह असमानता का कारक है। 

6. अन्य कारक- सामाजिक परिदृश्य, सामाजिक परिवेश, बाल श्रम, नारी के प्रति दृष्टिकोण, रुढ़िवादिता आदि कुछ अन्य अवरोध कारक हैं जिनसे शिक्षा में विषमता आ जाती है।

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1. बुनियादी शिक्षा का अर्थ, परिभाषा व उद्देश्य।                    2. शैक्षिक प्रबंधन का अर्थ एवं उद्देश्य। 





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