समय - विभाग चक्र निर्माण/बनाने के सामान्य सिध्दांत।

 समय - विभाग चक्र निर्माण/बनाने के सामान्य सिध्दांत 
(General Principle of Making School - Time Table)


समय - विभाग चक्र निर्माण/बनाने के सामान्य सिध्दांत

 


रुचि के अनुसार विषय चुन सके -

 समान-विभाग चक्र का निर्माण ढंग से किया जाए कि छात्रों को अपनी योग्यता तथा रूचि के अनुसार  विषय चुनने का अवसर प्राप्त हो सके।  यद्यपि हमारे देश में इस सिद्धांत का पालन आर्थिक कठिनाइयों के कारण नहीं हो पाता, क्योंकि विद्यालय में अनेक विषयों के पढ़ाने का प्रबंध तथा उनके लिए अलग कमरों की व्यवस्था करना अत्यंत कठिन है। इस सिद्धांत का पालन केवल पाश्चात्य देश कर सकते हैं, जहाँ की पर्याप्त मात्रा में धन की व्यवस्था हो जाती हैं। हमारे देश में न तो पर्याप्त मात्रा में विषय है और न धन। छात्रों को पाठ्यक्रम में उल्लेखित विभिन्न वर्गों से ही विषय चुनने  पड़ते हैं, इस प्रकार बालकों की रुचि की ओर कम ध्यान दिया जाता है। अधिकांशतया विद्यालय में समय- विभाग चक्र का निर्माण कर दिया जाता है और छात्रों को उसे इच्छा-अनिच्छा से स्वीकार करना पड़ता है। परंतु फिर भी हमें छात्रों की रुचि की ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए। छात्रों की रुचि ज्ञात करके उनकी रुचि के विषय को समय- विभाग चक्र में स्थान दिया जाए तो अच्छा है। 

छात्रों की रुचि ज्ञात करने के लिए उनसे रुचि  के विषय माँगे जाए तथा समस्त विषयों की एक सूची बनाकर यथासंभव समय-विभाग चक्र में उन्हें स्थान देने का प्रयत्न किया जाए। बालकों की रुचि को उचित रीति से ज्ञात करने के लिए उन्हें कार्ड प्रदान किये जाएं। इन कार्डो पर छात्र अपनी रुचि के विषय लिखकर दे कार्डों को एकत्रित करके रुचि वाले विषयों को ध्यान में रखकर समय-विभाग चक्र का निर्माण किया जाए।


अध्यापक और छात्रों का सम्पर्क -

बालकों की वास्तविक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक उनको अधिक-से-अधिक समझें। अध्यापक ओर छात्रों में जितना सम्पर्क बढेगा उतना ही वे एक - दूसरे को समझेंगे। छात्रों के अध्यापकों के निकट आने से वे उनके व्यक्तिगत भेदों को समझ सकेंगे तथा उनका निराकरण कर सकेगा। इस कारण समय-चक्र-निर्माण करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखा जाए कि अध्यापक और छात्र एक-दूसरे के अधिक-से-अधिक सम्पर्क में आये। यह सम्पर्क कक्षा में ही नहीं, वरन् कक्षा के बाहर भी हो। समय-चक्र में इस बात को स्थान दिया जाए कि एक माह में एक या दो बार किसी समारोह का आयोजन हो जिससे छात्र-अध्यापक के सम्पर्क का विकास कक्षा के बाहर भी हो सके। 


अध्यापक की योग्यता तथा रुचि को स्थान -

समय-तालिका का निर्माण करते समय अध्यापकों की रुचि तथा योग्यता का भी ध्यान रखा जाए। जहाँ तक हो सके, अध्यापकों को वे विषय प्रदान किये जाए जिनमें उनकी रूचि हो तथा जिनमें वे योग्यता रखते हैं। अध्यापकों की रूचि तथा योग्यता को ध्यान में रखकर बनाया गया समय - विभाग चक्र विशक्षण  के स्तर को उठाने में सहायक होता है। अध्यापक अपनी रुचि के विषयों को मन लगाकर पढ़ाते हैं तथा छात्र भी मन लगाकर पढ़ते हैं। इस प्रकार अध्यापकों की शक्ति का उचित प्रयोग हो जाता है। इसके विपरीत अध्यापकों की रुचि और योग्यता को ध्यान में रखकर समय- विभाग- चक्र का निर्माण न करने पर शिक्षा का स्तर गिर जाता है, क्योंकि अध्यापक शिक्षण- कार्य के प्रति उदासीन हो जाते हैं। 


कक्षानुसार समय विभाग चक्र-

समय विभाग चक्र का निर्माण करते समय इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि प्रत्येक कक्षा में शिक्षक एवं उसके विषय नाम का उल्लेख होना चाहिए। और सभी कालांश का क्रम कक्षा के अनुसार होना चाहिए। इससे प्रधानाध्यापक को यह ज्ञात रहता है कि कक्षा किस कालांश को किस शिक्षक के द्वारा कार्य कर रही है।


उचित रीति से कार्य का वितरण -

समय-चक्र का निर्माण करते समय इस बात का भी अवश्य ध्यान रखा जाए कि प्रत्येक अध्यापक को उसकी मानसिक तथा शारीरिक शक्ति देखते हुए कार्य सौंपा जाए। प्रधान अध्यापक को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि प्रत्येक अध्यापक पर समान रूप से कार्य-भार लादा  जाए। कठिन विषयों को पढ़ाने का भार केवल एक ही अध्यापक पर न डाला जाए। अंग्रेजी व गणित कठिन विषय है तथा इतिहास और भूगोल सरल विषय हैं, इस कारण समय - विभाग चक्र का निर्माण करते समय विषयों का परस्पर समन्वय करना ना भूले। एक अध्यापक को कठिन विषय के साथ एक सरल विषय दिया जाना उचित है, जिससे अध्यापक को अपना कार्य-भार स्वरूप न ज्ञात हो। 


सरलता तथा स्पष्टता -

समय-विभाग-चक्र का निर्माण ढंग से किया जाए कि छात्र सरलता के साथ समझ सके कि उनका कार्यक्रम क्या है? छात्रों का इधर-उधर आने- जाने में पर्याप्त समय नष्ट होता है, इस कारण समय- चक्र इस ढंग का ना हो कि छात्रों का अधिकांश समय इस कक्षा से उस कक्षा में आने जाने में नष्ट होता रहे। इस कारण समय- विभाग- चक्र के निर्माण में सरलता तथा स्पष्टता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। 


समय-विभाग-चक्र विस्तृत हो -

समय-विभाग-चक्र में केवल पाठ्य-विषयों को ही महत्व प्रदान नहीं करना है, वरन्  खेल-कूद, पाठ्यक्रम - सहगामी क्रियाओं को भी स्थान देना आवश्यक है। अधिकांशतया  समय-विभाग चक्र में केवल पुस्तकीय  ज्ञान को ही महत्व प्रदान किया जाता है। यथासंभव समय-विभाग-चक्र का निर्माण इस ढंग से किया जाए कि पुस्तकालय, वाचनालय, खेल-कूद आदि समस्त क्रियाओं का प्रयोग छात्र सरलता से कर सके। केवल पाठ्य-पुस्तकों तथा पाठ्य विषयों को ही महत्व प्रदान करना छात्रों के सर्वागीण विकास  को रोकना है। अतः समय-तालिका यथासंभव विस्तृत बनाई जाए।


नैतिक मूल्य -

समय-विभाग-चक्र का निर्माण केवल विद्यालय के कार्यक्रमों को चलाने के लिए ही नहीं किया जाए, वरन् उसका नैतिक मूल्य भी हो। समय- विभाग- चक्र इस प्रकार का हो, जिसका पालन करने से छात्र दृढ़ संकल्प, कार्यकुशलता तथा समय का सदुपयोग करना सीखें। वे विद्यालय में ही नियमित जीवन व्यतीत करना सीख सकें और उसका भविष्य में भी अपने जीवन को अत्यंत सुचारू तथा क्रमबद्ध रूप से चलने के लिए प्रयोग कर सकें। 


अन्य पढें -

1. संस्थागत नियोजन के उद्देश्य एवं सिध्दांत



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