महादेवी वर्मा का संक्षिप्त परिचय। महादेवी वर्मा की लेखन कला पर प्रकाश डालिए।

इस लेख में महादेवी वर्मा के जीवन परिचय और उनकी लेखन कला के बारे में जानकारी दी गई है
 

महादेवीजी का संक्षिप्त परिचय दीजिए

महादेवी वर्मा का जन्म संवत् 1964 में उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद नामक नगर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में सम्पन्न हुई। अल्पायु में विवाह हो जाने के कारण तथा ससुर के महिला-शिक्षा विरोधी होने के कारण उनकी आगे की शिक्षा में व्यवधान आ गया था, किन्त श्वसुर के निधनोपरांत उन्होंने अपनी लगन एवं अथक प्रयास से अपनी शिक्षा के टूटे क्रम को जोडते हुए संवत् 1977 में मिडिल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा सन् 1980 में प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत भाषा एवं साहित्य में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् 'प्रयाग महिला विद्यापीठ' की स्थापना कर, वे प्रधानाचार्य बनीं।


सन् 1988 ईसवीं में उनका देहावसान हो गया। अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा 'मंगला प्रसाद पारितोषिक', नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 'विद्यावाचस्पति' तथा भारत के राष्ट्रपति द्वारा 'पद्भूषण' की उपाधि से सम्मानित किया गया।

शिक्षा एवं साहित्य के प्रति प्रेम उन्हें विरासत में मिला था। अपनी माता से उन्होंने उनके स्वभाव की मृदुता, उदारता, प्राणिमात्र के प्रति प्रेम एवं ईश्वर के प्रति अनन्य आस्था रखना सीखा था। उनकी प्रारंभिक रचनाएँ 'चाँद' नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुईं। बाद में कुछ दिनों तक उन्होंने इस पत्रिका के संपादन का कार्यभार भी संभाला।


'महादेवी वर्मा' की लेखन कला पर प्रकाश डालिए।

महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में फर्रुखाबाद (उ.प्र) के एक सुसंपन्न परिवार में हुआ। आरंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। अल्पायु में विवाह हो जाने के कारण शिक्षा में व्यवधान आ गया, लेकिन फिर प्रयाग विश्वविद्यालय से बी. ए. और संस्कृत से एम. ए. किया। 'प्रयाग महिला विद्यापीठ' की स्थापना कर वे प्रधानाचार्य नियुक्त हुई। वहीं से महादेवी वर्मा ने खड़ीबोली में काव्य लिखना प्रारंभ किया। कुछ समय पश्चात उनकी रचनाएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी। यद्यपि वे विद्यार्थी जीवन से ही काव्य रचना करने लगी थीं जिसमें व्यष्टि में समष्टि और स्थूल में सूक्ष्म चेतना के आभास की अनुभूति हुई है। उनके प्रथम काव्य संग्रह 'नीहार' की अधिकांश कविताएँ उसी समय की हैं।

यद्यपि महादेवी वर्मा ने काव्य-रचना की है लेकिन गद्य के क्षेत्र में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण है। 'स्मृति की रेखाएँ', 'अतीत के चलचित्र' उनके संस्मरणात्मक गद्य रचनाओं के संग्रह हैं। 'शृंखला की कड़ियाँ' में सामाजिक समस्याओं, विशेष कर नारी जीवन के संबंध में लिखे गए विचारात्मक निबंध संकलित हैं।


नीहार, रश्मि, नीरजा, सान्ध्यगीत, दीपशिखा इनके पाँच काव्य संग्रह हैं। 'यामा' में उनके प्रथम चार काव्य संग्रहों की कविताओं का एक साथ संकलन हुआ है। महादेवी वर्मा छायावादी कवियों में भी अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। महादेवी वर्मा का समस्त काव्य वेदनामय है। यह वेदना सांसारिक न होकर आध्यात्मिक जगत की है। महादेवी वर्मा ने यद्यपि रहस्यवादी एवं भावमूलक कविताओं का सृजन अधिकतम किया तथापि राष्ट्रप्रेम, प्रकृतिप्रेम एवं सांस्कृतिक चेतना का चित्रण करती कविताएँ भी लिखी हैं।


अपने लेखन में उन्होंने बिम्बों तथा प्रतीकों का सहारा लिया है। उनकी सूक्ष्म दृष्टि, कल्पना शक्ति एवं भाषा का प्रवाह उनके लेखन को सबसे अलग और वैशिष्ट्य प्रदान करने वाला है। कवयित्री एवं लेखिका के रूप में आपने पर्याप्त ख्याति अर्जित की है। साहित्यिक सेवाओं के लिए आपको 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' 'विद्यावाचस्पति' तथा 'पदमभूषण' जैसी उपाधियों से सम्मानित किया गया।






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