रेखाचित्र
यह शब्द अंग्रेजी के 'स्केच' शब्द का हिन्दी अनुवाद है। यह शब्द 'रेखाचित्र' दो शब्दों के मेल से बना है- रेखा और चित्र। इसमें किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना के बाह्य तथा आन्तरिक स्वरूप को कलात्मक रेखाओं के द्वारा इस प्रकार चित्र प्रस्तुत किया जाता है कि वह पाठक के हृदय में। सजीव और यथार्थ रूप में मूर्तिमान हो जाए।
जब कोई साहित्यकार मन पर अंकित बिखरी हुई शृंखला के रूप में अन्य अनेक स्मृति रेखाओं में से उभरी हुई और कहीं गहरे प्रभावित करने वाली रमणीय रेखाओं को अपनी कला की सान पर चढ़ाकर कलम रूपी कूँची से अपने अनुभव के रंग में रंग कर जीते-जागते गतिमान शब्द चित्र के रूप में परिणत कर देता है तो वह साहित्य की कोटि में विधा रूप में रेखाचित्र कहलाता है।
रेखाचित्र अन्य विधाओं की अपेक्षा शब्द योजना एवं वाक्य-विन्यास की दृष्टि से एक सीमा से बँधा होता है। यह कम-से-कम शब्दों, सजीव से सजीव रूप विधान और छोटे-छोटे वाक्यों के द्वारा अधिक-से-अधिक प्रखर और तीव्र भावव्यंजना है। वही कलाकार रेखाचित्रांकन में सफल हाता है, जो अत्यधिक संवेदनशील तथा सूक्ष्म पर्यवेक्षण दृष्टि से निपुण होता है।
इस प्रकार रेखाचित्रद्वारा साहित्य और चित्रकला का अद्भुत और चित्राकर्षण सामंजस्य प्रस्तुत होता है। इसलिए रेखाचित्रकार तो किसी चित्रकार की तूलिका और रंगों द्वारा प्रस्तुत हुए सजीव चित्रों की तरह अपने शब्दों के माध्यम से वह भावपर्ण चित्रण करता है, जिससे उसकी वास्तविक और सच्ची संवेदना का अत्यन्त सफल मूर्ति उपस्थित हो सके।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि रेखाचित्रकार एक कुशल शब्द-शिल्पी होता है, जिसके चुने हुए शब्द अति विशिष्ट स्वरूप प्रस्तुत करने में सक्षम होते हैं। भले ही वह काल्पनिक क्यों न लगे। तथापि उसकी सजीवता और रोचकता को अस्वीकार नहीं कर पाता है। ऐसे स्वरूप-चित्रों को वह अपनी निजी अनुभूति की यथार्थता के बल पर प्रस्तुत करता है। यही कारण है कि एक सफल रेखाचित्र में सूक्ष्म पर्यवेक्षण, यथार्थ विचार भावना और कल्पना का आनुपातिक प्रचुरता आवश्यक रूप में होती है। इस प्रकार से रेखाचित्र का प्रस्तुतिकरण सांकेतिक होकर अल्प शब्दावली के द्वारा किसी घटना, वस्तु का व्यक्ति की मूलगत विशेषता को उभारने वाला होता है। इसके लिए रेखाचित्र तटस्थ बनकर रहता है। यह ध्यातव्य है कि संस्मरण की तरह चित्राचित्र अभिधामूलक न होकर सांकेतिक और व्यंजक होता है। वह संस्मरण का कलात्मक विकास होता है।
रेखाचित्र परिभाषाएँ
रेखाचित्र को गद्य के नवीन रूपों में प्रमुखतम रूप माना है। रेखाचित्र के विषय में अनेक मूर्धन्य साहित्यकारों ने अपने मत अभिमत व्यक्त किए हैं। कुछ प्रमुख मत-अभिमत इस प्रकार हैं-
1. श्रीराम वृक्ष बेनीपुरी और यशपाल, सत्यपाल चुघ, आदि के अनुसार-“रेखाचित्रकार शब्द-चित्र है।"
2. मक्खनलाल शर्मा के अनुसार-"किसी भाव-विशेष को दृष्टा के हृदय में जिस प्रकार चित्र का उद्देश्य जाग्रत कर देना है, उसी प्रकार से इतिहास, घटना, मनोविज्ञान, वातावरण आदि की सहायता से रेखाचित्र भी अभीप्सित भाव की अनुभूति बना देता है तथा पाठक एक नवीन मानसिक अवस्था को प्राप्त कर रसमग्न हो जाता है।"
रेखाचित्र में शब्दों का प्रयोग चित्र शिल्पी की भाँति होता है। यहाँ शब्द ही रेखा के रूप में कवि कल्पित आकार ग्रहण कर लेते हैं जबकि जीवनी में लेखक सर्वांगीण चित्र प्रस्तुत करता हुआ दु:ख-सुख और कुतूहलजन्य वर्णन से एक प्रवाह प्रदान करता है। क्योंकि रेखाचित्र तो वास्तव मे यथार्थ का वह चटकीला चित्र रूप होता है जिसकी रचना लेखक के निजी अनुभूति अपनी वैयक्तिक विशिष्टताओं की पट्टिका पर कल्पना की कूँची से शब्द रेखाओं द्वारा भावना के कोमल करों द्वारा करती है।
संस्मरण और रेखाचित्र में साम्यासाम्य (अंतर और समानता)
संस्मरण और रेखाचित्र एक-दूसरे से इतने मिलते-जुलते हैं कि सहसा दोनों में विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती। यही कारण है कि संस्मरण और रेखाचित्र संस्मरणात्मक में समर्थमान व्यक्ति का रेखाचित्र प्रस्तुत करने को तथा रेखाचित्रकार में उसका संस्मरण प्रस्तुत करने की प्रवत्ति प्रायः देखा जा है। इसीलिए डॉ. विश्वम्भर मानव की मान्यता है: "मेरी जानकारी में हिन्दी में पूर्ण वैज्ञानिक स्थिति में लिखित रेखाचित्र विषय प्रधान होता है और संस्मरण विषयी प्रधान अर्थात् रेखाचित्र अव्यक्तिगत शैली में लिखा जाता है, तो संस्मरण व्यक्तिगत शैली में। इसलिए संस्मरण में व्यक्ति का 'स्व' की प्रधानता रहती है। इसी व्यक्ति अथवा 'स्व' के बल पर ही उसमें संस्मरणत्व आता है। हिन्दी के रेखाचित्रकार प्रायः आत्मनिष्ठ होते हैं। इसलिए हिन्दी के रेखाचित्र संस्मरणात्मक हो जाते हैं। लेकिन दोनों पर्यायवाची नहीं हैं। दोनों एक-दूसरे के अंग मात्र हैं। दोनों में से एक-दूसरे के कुछ अंश ही पाए जाते हैं।"
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