यात्रा वृत्तांत - परिभाषा, प्रमुख यात्रा वृत्तांत और लेखक

यात्रा वृत्तांत 

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यात्रा-वृत्तांत गद्य साहित्य की एक अमल्य विधा है। इस विधा के अन्तर्गत लेखक स्वयं द्वारा की हुई किसी स्थल विशेष की यात्रा का भावपूर्ण शब्दों में चित्रण करता है। इसे पढ़कर पाठक भले ही उस स्थान से परिचित न हों, लेकिन मानसिक रूप से उसकी यात्रा करके आनन्द विभोर हो जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि लेखक के यात्रा-वृत्तांत का यही लक्ष्य और अभिप्राय होता है कि वह अपने निजी अनुभवों को पाठक तक पहुँचा सके। इसकी सफलता लेखक की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति पर निर्भर करती है। 


परिभाषा- "जब साहित्य अपनी यात्रा के संस्मरणों को इस प्रकार लिपिबद्ध करे कि यात्रा किए गए स्थल का मूर्त रूप पाठक के समक्ष आ जाए, जो उस साहित्यिक एवं कलात्मक यात्रा विवरण को यात्रा साहित्य कहते हैं।" - श्री बालकृष्ण राव 


डॉ. विश्वनाथ तिवारी लिखते हैं कि-"कलाकार स्वभावतः यायावर होता है। उसकी आत्मा एक शाश्वत यात्री है, जिसके लिए कोई विराम नहीं है। वह सदैव कल्पनालोक की यात्राएँ किया करता है। वास्तविक जीवन में भी भ्रमण उसके लिए प्रिय है। गति उसके लिए प्राण संचार की पहली शर्त है।"

हिन्दी साहित्य में यात्रा-वृत्तांत का विकास आधुनिक काल अर्थात् भारतेन्दु युग से पूर्व ही हो चुका था, लेकिन उसमें साहित्यिक और यायावरी का अभाव था, यही कारण है कि इस प्रकार के यात्रा-वृत्तांत लेखन को यात्रा साहित्य के अंतर्गत रखना सर्वथा अनुचित और असंगत होगा।

यात्रा-वृत्तांत के उद्भव, विकास के बारे में यहाँ कहा जा सकता है कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। द्विवेदी युग की रचनाएँ वास्तविक अर्थ में यात्रा-साहित्य के अंतर्गत रखी जा सकती हैं। किसी दृश्य, स्थान अथवा व्यक्ति के आकर्षण को उभारने की प्रवृत्ति इसमें मिलती है।


प्रमुख यात्रा वृत्तांत नाम व लेखक 

रामनारायण मिश्र (यूरोप यात्रा छह मास), कन्हैयालाल मिश्र (हमारी जापान यात्रा), प्रो. मनोरंजन (उत्तराखंड के पथ पर), जवाहरलाल नेहरू (आँखों देखा रूस), सूर्यनारायण व्यास (सागर प्रवास), रामधारीसिंह दिनकर (देश-विदेश मेरी यात्राएँ), विष्णु प्रभाकर (हँसते निझर), राहुल सांकृत्यायन (घुमक्कड़ शास्त्र, मेरी लद्दाख यात्रा, जापान, मेरी यूरोप यात्रा), अमृत राय (सुबह के रंग), अज्ञेय (अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली)। नए लेखकों में मोहन राकेश कृत (आखिरी चट्टान तक), डॉ. नागेन्द्र कृत 'तन्त्रलोक से यंत्रलोक तक' आदि रचनाएँ महत्वपूर्ण हैं। अंतत: यह कह सकते हैं कि यात्रा-साहित्य पूर्णत: समृद्ध है।

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