संस्मरण
किसी घटनास्थल या व्यक्ति से सम्बन्धित अनुभूति लेखक के हृदय-पटल पर छाकर उसके मन को भीतर ही भीतर कुरेदती रहती है। वह अभिव्यक्ति के रूप में आकर संस्मरण बन जाती है। लेखक के जीवन में अनेक ऐसे क्षण आते हैं, जब ऐसे व्यक्तियों से उसका सम्पर्क होता है, जिन्हें वह जीवन भर नहीं भुला पाता। उनकी स्मृति की अनुभूति ही जो निधि बनकर मन के अंतराल में छिपी होती है, भावावेश में संस्मरण के रूप में छलक पड़ती है। संस्मरण लेखक के निजी जीवन की सत्य घटना पर आधारित होता है।
संस्मरण-साहित्य के क्षेत्र में सबसे पहले आचार्य चतुरसेन शास्त्री के संस्मरण हमारे सामने आते हैं। इनके संस्मरणों से जीवन के विभिन्न भावपक्षों, विचारों के साथ-साथ राजनीति, संस्कृति आदि युग परक, स्थितियों पर भी प्रकाश पड़ता है। 'पहली सलामी' संस्मरण में शास्त्रीजी ने असेम्बली में भगतसिंह द्वारा बम फेंकने का आँखों देखा वर्णन किया है। लोकमान्य तिलक संस्मरण में लेखक ने उसकी सम्पर्क की कटु मधुर स्मृतियों का जो चित्र प्रस्तुत किया है, इसमें तत्कालीन राजनीति की उथल-पुथल का चित्र भी प्रस्तुत हो गया है। | 'मेरे बालसखा शांति' में प्रसिद्ध वैज्ञानिक शांतिस्वरूप भटनागर, 'उत्तर के खुमेरु स्वामी श्रद्धानन्द', 'जब मैं उनसे मिल गया', 'मैं जवाहरलाल नेहरू से एक भेंट', 'हाजी मुहम्मद अल्ला रखिया शिवाजी', 'ब्रज वल्लभ शर्मा', 'रामरख सहगल', 'पं. छोटेलाल' ऐसे ही संस्मरण हैं। 'साहित्य को मोड़', 'उत्तप्त जलकण', 'मुबलिग पाँच रुपये', 'श्री जेनेन्द्र का विवाह', 'ठण्डी हवाएँ', 'पैसठवाँ जन्म नक्षत्र', 'अड़सठ की दोहरी से' आदि शास्त्री जी के साहित्यिक संस्मरण हैं।
हिन्दी के संस्मरण लेखकों में रामवृक्ष बेनीपुरी का स्थान महत्वपूर्ण है। आपके संस्मरणों में विषय के वर्णन के साथ में स्वयं की अनुभूति का भी मार्मिक चित्रण हुआ है। ये पाठकों के हृदय में करुणा, सहानुभूति, हर्ष विभोरता आदि उत्पन्न करने में समर्थ हैं। भाषा में सरलता और सहजता के साथ में तीखी व्यंग्यात्मकता भी मिलती है। आपके जेल-जीवन के मार्मिक संस्मरणों का संग्रह 'जंजीरें और दीवारें' संस्मरण संग्रह में हुआ है।
हिन्दी संस्मरण-साहित्य के क्षेत्र में महादेवीजी का शीर्ष स्थान है। महादेवीजी मूलतः कवियित्री हैं। यही कारण है कि आपके संस्मरणों में कवि हृदय की कोमलता या भावुकता और मधुरता मिलती है। मित्रोपमता और स्मारिका (सं. 1971) आपके संस्मरण-संग्रह प्रकाशित हो चुके है। महादेवी के रेखाचित्र संस्मरणात्मक रेखाचित्र हैं। वे व्यक्ति विशेष अथवा घटना विशेष के चित्राकन मात्र नहीं हैं, अपितु उनकी व्यक्तिगत रागात्मक अनुभूति से आद्र हैं। उन्होंने स्मारिका कुछ विचार में लिखा है
"मेरे संस्मरणों में रेखाचित्र भी सम्मिश्रित हो जाते हैं जिसका स्पष्ट कारण मेरा रेखांकन प्रेम ही कहा जाएगा। ............व्यक्ति वस्तु घटना आदि का अपने रागात्मक परिधि में लाकर मेरे स्वभाव के अनुकूल पड़ता है, क्योंकि उसी स्थिति में अनेक सुख-दुखों से मेरा तादात्म्य संभव है।"
'अश्क' जी ने भी संस्मरण लिखे हैं। इनमें से कुछ संस्मरण शैली और कुछ पत्र और डायरी में हैं। 'साहित्यिक संस्मरण' पुस्तक में किशोरीलाल वाजपेयी के साहित्यिक जीवन के सुन्दर, रोचक और कलापूर्ण संस्मरण हैं। इस पुस्तक के चार भागों में सन् 1919 से लेकर सन् 1954 तक के संस्मरण संकलित हैं।
कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' के संस्मरण बड़े रोचक हैं। उनकी 'जिन्दगी मुस्कुराई' सन् 1955 की सर्वश्रेष्ठ संस्मरण पुस्तक मानी गई। इसके तैंतालिसों संस्मरण सजीव, रोचक और प्रेरणादायक हैं। जैनेन्द्रजी पर लिखे संस्मरणों में जैनेन्द्रजी की प्रकृति मूर्तिमान हो उठी है। आप 'नया जीवन', 'धर्मयुग' और ज्ञानदेय पत्रिकाओं के बराबर संस्मरण लिखते रहते हैं
इस युग के संस्मरण लेखकों में बनारसीदास चतुर्वेदी का भी महत्वपूर्ण स्थान है। संस्मरण नाम से आपके 21 संस्मरण का संग्रह प्रकाशित हो चुका है। आपने अपने संस्मरणों में विविध क्षेत्रों से व्यक्तियों को चुना है।
सम्बन्धित व्यक्तियों का अनुभूतिपूर्ण चित्रण होने के साथ ही उनके आसपास का सामाजिक वातावरण भी सजीव हो उठा है।
स्वतंत्रता के पश्चात् पत्र-पत्रिकाओं में अधिक मात्रा में संस्मरण प्रकाशित हुए। भगवतीप्रसाद वाजपेयी का 'महाप्राण निराला', विनय मोहन शर्मा का 'लक्ष्मी का घर' आदि संस्मरण उल्लेखनीय हैं।
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