शैक्षिक प्रबंधन का अर्थ एवं परिभाषा
शिक्षा प्रबंधन का अर्थ जानने से पूर्व प्रबंधन का आशय जानना आवश्यक है। प्रबंधन का अर्थ है कि संगठन में व्यक्तियों से कार्य कराना। अतः अंग्रेजी के शब्द मैनेज, मेन-टेक्टफुली को मैनेजमेंट कहते हैं। प्रबंधन एक व्यापक एवं जटिल संप्रत्यय हैं। इसकी परिभाषा देना असंभव तो नहीं, लेकिन कठिन अवश्य प्रतीत होता है।
शैक्षिक प्रबंधन की परिभाषाएँ - शैक्षिक प्रबंधन को विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है -
हेराल्ड कीजन के मतानुसार ' औपचारिक रूप से संगठित समूहों में व्यक्तियों से मिलकर कार्य करने की कला ही प्रबंधन है।'
लाॅरेन्स ए एटले के शब्दों में, ' प्रबंधन क्रियाओं का नियोजन तथा निर्देशन नहीं, अपितु मनुष्य का विकास करना है।'
जेम्स लुण्डे के मतानुसार, ' प्रबंधन मुख्य रूप से किसी विशिष्ट उद्देश्यों के लिए प्रयासों का नियोजित समन्वित, अभिप्रेरित तथा नियंत्रित करने की कला है।'
प्रबंधन का स्वरूप या प्रकृति - प्रबंधन एक परिवर्तनशील प्रक्रिया है, जिसकी प्रकृति प्रायः परिवर्तित होती रहती हैं। प्राचीन समय में प्रबंधन तथा स्वामित्व को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता था, लेकिन आज विकासशील युग में इनका अर्थ तथा प्रकृति भिन्न-भिन्न है।
प्रबंधन की प्रकृति को निम्नलिखित रूपों में प्रकट कर सकते हैं-
1.पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाना प्रबंधन का प्रमुख कार्य हैं।
2. प्रबंधन एक ऐसा व्यवसाय हैं जिसकी स्वयं की आचार संहिता होती हैं।
3. प्रबंधन अध्ययन क्षेत्र होने के साथ ही साथ कला एवं विज्ञान भी हैं।
4. प्रबंधन एक ऐसा यंत्र है जिसमें सभी व्यक्ति संगठित समूह के रूप में कार्य करते हैं।
5. प्रबंधन अधिकार तंत्र के साथ ही साथ विकास का साधन भी हैं।
6. व्यक्तियों से कार्य कराने की प्रबंधन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
शिक्षा प्रबंधन का अर्थ/आशय - शिक्षा प्रबंधन का तात्पर्य किसी निश्चित उद्देश्य से शिक्षा के सुनियोजित प्रबंध से हैं। विद्यालय कार्यक्रम की वह रूपरेखा जिसके अंतर्गत निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भौतिक तथा मानव साधनों को इस प्रकार लगाया जाता है जिसमें अधिक से अधिक लोगों को अधिकतम लाभ हो तथा साधन एवं श्रम का दुरुपयोग न हो।
वास्तव में शिक्षा प्रबंधन का उद्देश्य, अध्ययन- अध्यापन के लिए उचित वातावरण का निर्माण करना, विभिन्न शैक्षिक क्रियाओं, उनके आदर्श और व्यवहार में समन्वय स्थापित करना, उचित व्यक्ति को उचित कार्य में लगाकर भौतिक तथा मानवीय साधनों के सदुपयोग का मार्ग प्रशस्त करना, कार्य की जटिलता को सरल करना, अध्यापक तथा अन्य कर्मचारियों को आवश्यक निर्देशन एवं प्रशिक्षण देना, शैक्षिक क्रिया तथा उसके प्रभाव का मूल्यांकन करना एवं प्रयोग तथा अनुसंधान के लिए समुचित वातावरण का निर्माण करना है।
शैक्षिक प्रबंधन के उद्देश्य-
वर्तमान- युग में शैक्षिक प्रबंधन की महत्ता एवं आवश्यकता को देखते हुए आज शैक्षिक प्रबंधन के उद्देश्यों की नितांत आवश्यकता बनी हुई है। अतः शैक्षिक विकास की दृष्टि से निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किए जा सकते हैं-
1. शैक्षिक दृष्टि से शिक्षार्थी ओर शिक्षण में सुरक्षा की भावना विकसित करना।
2. समय-समय पर शिक्षा में सुधार के लिए शिक्षा आयोगों तथा समितियों का गठन करना।
3. शिक्षा में व्याप्त अपव्यय-अवरोधन को शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर रोकना।
4. शिक्षा संबंधी नीतियों का निर्धारण करना, शिक्षा योजनाएं बनाना और उन्हें कार्यान्वित करना।
5. शिक्षा संबंधी उत्तरदायित्वों को स्वीकार करना तथा उनका उचित निर्वाह करना।
6. शिक्षा के नवीन उद्देश्यों, मूल्यों, मान्यताओं सिद्धांतों आदि का निर्धारण करना।
7. शिक्षा-संस्थाओं का निरीक्षण तथा पर्यवेक्षण कराना तथा आवश्यक प्रगति के लिए निर्देशन देना।
8. शिक्षा संबंधित प्रत्येक संगठन के लिए पृथक - पृथक प्रबंधात्मक नेतृत्व प्रदान करना।
9. शैक्षणिक कार्यक्रमों को चलाने के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था करना एवं शिक्षण से संबंधित आय-व्यय का अभिलेख तैयार करना।
10. शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के बीच और शिक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों में समन्वय तथा समायोजन स्थापित करना।
शैक्षिक प्रबंधन की विशेषताएं -
शैक्षिक प्रबंधन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है -
1. प्रबंधन उत्पादन का एक आर्थिक संसाधन-
आर्थिक क्रियाओं में भूमि, श्रम, पूंजी, साहस और विनिमय प्रमुख घटक है। ये सभी घटक स्वतंत्र होते हुए भी प्रबंधन के अधीन है। अतः प्रबंधन के अभाव में उत्पत्ति के सभी साधन अपूर्ण तथा निष्क्रिय हैं।
2. प्रबंधन मूल रूप से क्रिया है-
शैक्षिक प्रबंधन मूल रूप से वह क्रिया है जो कार्य का संपादन करती हैं। इसका संबंध मानवीय संबंध, भौतिक संसाधन एवं निष्पत्ति से होता है।
3. प्रबंधन एक सार्वभौमिक क्रिया है-
प्रबंधन किसी भी कार्य को समुचित दिशा प्रदान करने में हमेशा सहयोगी रहा है तथा यह सार्वभौम है। सभी प्रकार की संस्थाओं में ये कार्यशील है। प्रबंधन का कार्य प्रबंधक को करना पड़ता है।
4. प्रबंधन का दायित्व कार्य कराना है-
शैक्षिक प्रबंधक स्वयं कार्य ना करके,दूसरों से कार्य कराता है। प्रधानाचार्य स्वयं बहुत कम पढ़ाते हैं लेकिन प्रत्येक शिक्षक के कार्य लेते हैं और शिक्षक कर्मचारियों द्वारा शैक्षिक सुविधायें जुटाने तथा वातावरण का निर्माण कराने में सहयोग लेते हैं।
5. प्रबंधन एक अधिकार व्यवस्था है-
किसी भी क्षेत्र में प्रबंधन, अधिकार के रूप में प्रयुक्त होता है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रबंधन एवं प्रबंधक दो वर्ग होते हैं। प्रबंधक वर्ग के अधिकार अधिक होते हैं तथा वे अपने अधीनस्थों से कार्य लेते हैं। सभी के अपने पदों के अनुरूप अधिकार तथा भूमिका होती है। ये अपने अधीनस्थों का मार्गदर्शन करते हैं। इसमें नियंत्रण समन्वय एवं नेतृत्व करते हैं।
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