प्रभावपूर्ण शैक्षिक नेतृत्व के कार्य और शैक्षिक नेतृत्व में बाधाएं।

 प्रभावपूर्ण शैक्षिक नेतृत्व के कार्य

प्रभावपूर्ण शैक्षिक नेतृत्व के कार्य और शैक्षिक नेतृत्व में बाधाएं



1. सुनिश्चित योजना का निर्माण (planning) 


योजना जितनी सुदृढ़ तथा सुनिश्चित होगी, कार्य में उतनी ही सफलता मिलेगी। उद्देश्य प्राप्ति एवं सफलता के लिए नेता को अत्यंत कुशलतापूर्वक योजना का निर्माण करना चाहिए। योजना में क्रमबद्धता  तथा सैध्दांतिकता होनी चाहिए। शैक्षिक नेता योजना का निर्माण इस प्रकार करता है जिससे शिक्षा की गुणात्मकता में वृद्धि होती है तथा विद्यालयों की सेवा द्वारा समाज को भी अधिकाधिक लाभ मिलता है। 


2. वित्तीय कार्य- कुशलता(efficiency in educational finance) - 


 शैक्षिक नेतृत्व का कार्य वित्तीय समस्याओं को सुलझाने का भी होता है। नेता को "भवन निर्माण, पुस्तकालय, कीड़ा, सांस्कृतिक" कार्य आदि पर व्यय होने वाली धनराशि का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। उसे बजट बनाने तथा उसे भली प्रकार समझने में प्रवीण होना चाहिए। वास्तव में विद्यालय - कोष को उचित रूप में व्यय करना नेता की कुशलता पर ही अवलंबित होता है वार्षिक आय वित्तीय - निरीक्षण के कार्य को भी ठीक प्रकार से समझना अत्यंत आवश्यक हैं। 


3.विकास कार्यों में निरंतरता(Continuation in developing program) - 


नेता को संपूर्ण राष्ट्र के शैक्षिक विकास, राष्ट्रीय नीति, स्थानीय सहायता, स्त्रोत आदि का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। शैक्षिक नेता के कार्य कि तभी प्रशंसा होती हैं जब वह विद्यालय की निरंतर उन्नति के लिए प्रयत्न करता है। विद्यालय को अधिक दिनों तक सुप्तावस्था में रखना किसी भी दशा में प्रशंसनीय नहीं कहा जा सकता। "स्थानीय व्यक्तियों की सहायता को प्राप्त करना, शैक्षिक योजनाओं के लिए विभिन्न स्रोतों से धन एकत्रित करना, शिक्षा अधिकारियों को विद्यालय के लाभार्थ आमंत्रित करना, नवीन अनुसंधानो तथा नवीन शिक्षण - पद्धतियों को अपनाना" आदि ऐसे अनेक कार्य होते हैं जिसमें विद्यालयों की निरंतर उन्नति होती हैं तथा शैक्षिक नेता की ख्याति में भी वृद्धि होती है। 


4. संस्थागत प्रशासन (Institutional Administration) - 


शैक्षिक नेता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य उस संस्था के प्रशासन को ठीक रखना है जिसका उत्तरदायित्व उसके कंधों पर होता है। विद्यालय की अनेक गतिविधियां होती हैं" शिक्षण कार्य, कार्यालय संबंधी कार्य, पुस्तकालय, कीड़ाकार्य, शिक्षाधिकारियों के कार्यालयों से संबंधित कार्य, समाज की व्यक्तियों से संपर्क रखना" आदि ऐसे अनेक कार्य हैं जिनके संबंध में नेता को सदैव जागरूक रहना चाहिए।


कार्यों के संबंध में पूर्ण ज्ञान तथा उन्हें क्रियान्वित कराने का कौशल शैक्षिक नेता में पूर्णतया होना चाहिए। शैक्षिक नेता को समुदाय तथा विद्यालय के निकटतम पड़ोसियों से भी उत्तम संबंधों की स्थापना करनी चाहिए तथा विद्यालय की उन्नति में उनका निरंतर सहयोग प्राप्त करना चाहिए। सारांश यह है कि शैक्षिक नेता स्वभाव, व्यवहार, निरीक्षण, आय-व्यय ज्ञान, नियंत्रण आदि में निपुण होकर ही संस्था के प्रशासन का ठीक रुप से संचालन कर सकता है। 


5. नियुक्ति एवं चयन(Recruitment and selection) - 


संस्था का संपूर्ण कार्यभार योग्य अध्यापकों की नियुक्ति पर ही आश्रित होता है। योग्य शैक्षिक नेता का यह स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए कि किस विषय तथा किस वेतनमान में कितने अध्यापकों के स्थान रिक्त होने वाले हैं तथा रिक्तपूर्ति हेतु किन योग्यताओं से परिपूर्ण अध्यापकों  की नियुक्ति करनी है। नियुक्ति, प्रोन्नति के नियमों का भी नेता को पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। नियुक्ति इस प्रकार विधिवत की जाए कि उनका अनुमोदन शिक्षाधिकारी- कार्यालय से अविलंब प्राप्त हो जाए। नियुक्ति संबंधी प्रश्नों में हेरफेर करने तथा नियमों का अधूरा ज्ञान होने से शिक्षकों का अनुमोदन दीर्घकाल तक ना मिलने के कारण शिक्षकों को निराशा होने लगती हैं।


उन्हें अपना भविष्य अधर में टंगा हुआ नजर आने लगता है वास्तव में शिक्षकों को इस संबंध में सुविधा प्रदान करने का संपूर्ण उत्तरदायित्व नेता पर ही होता है। शैक्षिक नेता को अपने आश्रित व्यक्तियों की निरंतर उन्नति करने में प्रसन्नता होनी चाहिए। इसके विपरीत योग्य अध्यापकों की कुशलता से भयभीत होना अथवा उनके अध्यापन कार्य के प्रति ईर्ष्या भाव रखना तथा उनकी उन्नति में परोक्ष अथवा अपरोक्ष  ढंग से रोड़े अटकाना शैक्षिक नेता के व्यक्तित्व में व्याप्त हीन भावना को ही व्यक्त करता है। निस्संदेह नियुक्ति एवं चयन संबंधी कार्यों में शैक्षिक नेता को अत्यधिक कुशल होना चाहिए। 


6.छात्रो के प्रवेश की योजना (Planning for the student's admission) - 


संस्था की सामर्थ्य अनुसार छात्रों को प्रवेश देने की योजना बनाना नेता का महत्वपूर्ण कार्य होता है। इसके लिए "अध्यापकों की समिति का निर्माण करना, प्रवेश के लिए परीक्षा आदि की योजना बनाना तथा छात्रों के पुराने चारित्रिक तथा शैक्षिक प्रमाणपत्रों का ध्यान पूर्वक अवलोकन करना" आदि प्रमुख कार्य समझे जाते हैं। कुछ अच्छे वक्ता, कुशल खिलाड़ी तथा पाठ्येतर क्रियाओं में अग्रणी छात्रों को प्रविष्ट करने में भी प्रधानाचार्य को सजग रहना आवश्यक हैं। 


7. विद्यालय भवन तथा साज-सज्जा (School Building and Equipment) - 


विद्यालय के भवन निर्माण का उत्तरदायित्व शैक्षिक नेता पर ही होता है। भवन का बनाना, उसकी मरम्मत करना तथा आवश्यकता के अनुसार उसका विकास करना प्रधानाचार्य के मुख्य कार्यों में सम्मिलित होता है। भवन निर्माण के लिए नेता को योग्य इंजीनियरों तथा तकनीकी विशेषज्ञों से परामर्श लेना चाहिए। केवल भवन निर्माण करने में ही शैक्षिक नेता के कार्य की इतिश्री (समाप्ति) नहीं समझी जाती अपितु प्रत्येक विषय तथा विभाग के लिए साज- सज्जा का प्रबंध करना भी अत्यंत आवश्यक है। कला, विज्ञान, गृह विज्ञान आदि विषयों के कमरों में पर्याप्त शिक्षण - सामग्री इस प्रकार व्यवस्थित की जानी चाहिए जिससे आगंतुकों तथा अतिथियों द्वारा प्रशंसा प्राप्त हो सके। 


शैक्षिक नेता द्वारा ये सभी कार्य कुशलता के साथ किए जाने चाहिए इन कार्यों का परिणाम विद्यालय की उन्नति तथा प्रधानाचार्य की प्रशंसा के रूप में दृष्टिगोचर होता है। वस्तुतः किसी भी शिक्षक नेता का व्यक्तित्व कार्य क्षेत्र में ही चमकता है प्रत्येक क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान रखने तथा शिक्षण संस्था के कार्य को कुशलता पूर्वक करने से शैक्षिक नेता आदर व यश का पात्र होता है। 



शैक्षिक नेतृत्व में बाधाएं 
(Hindrances to Educational leadership) 


1.विभागीय नियम तथा कानून -

 

शिक्षा संस्थानों पर शिक्षा विभाग तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नियंत्रण होता है शैक्षिक नेतृत्व को इन संस्थाओं के नियमों और कानूनों के अनुसार कार्य करना पड़ता है। प्रत्येक राज्य की शिक्षा को निर्देशित करने वाली नियमावली निर्धारित होती है इस सारी व्यवस्था में कभी-कभी अंतर्विरोध होता है, जिससे शैक्षिक नेतृत्व को परेशानियों का सामना करना पड़ता है सभी नियम तथा कानून वरिष्ठ अफसरों द्वारा उच्च स्तर पर बनाए जाते हैं जो वास्तविक स्थिति से अनजान होते हैं परंतु इसका खामियाजा शैक्षिक नेतृत्व को भुगतना पड़ता है। 


2. निश्चित शैक्षिक नीति का अभाव - 


आजकल अधिकतर देशों में जनतंत्रीय  शासन प्रणाली का प्रचार हो रहा है, प्रत्येक राज्य में सरकारें बदलती रहती है हर नई सरकार पुरानी शासन प्रणाली में बदलाव करती हैं। शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक नीतियां को हर साल या हर परिवर्तन में बदल दिया जाता है। जिससे निचले स्तर पर गतिरोध पैदा हो जाता है। शैक्षिक नीतियों के निर्माण में निम्न स्तर पर किसी व्यक्ति से सुझाव नहीं लिए जाते अपितु यदा- कदा राजनीतिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार हेतु की शैक्षिक नीतियां बनाकर थोप दी जाती है ऐसी स्थिति में शैक्षिक नेतृत्व असहाय हो जाता है वह स्वयं को व्यवस्था की एक कड़ी समझने लगता है इससे नेतृत्व का अस्तित्व केवल नाम मात्र का रह जाता है। 


3. धन एवं संसाधनों का अभाव - 


किसी भी संस्था का विकास बिना धन  एवं भौतिक संसाधनों के नहीं हो सकता है। किसी भी शैक्षिक संस्था में उचित शैक्षिक व्यवस्था हेतु पुस्तकालय, कक्षा-कक्ष, अन्य शैक्षिक सामग्री, कर्मचारियों के वेतन आदि की आवश्यकता होती हैं जो बिना धन के संभव नहीं है। अतः इन संसाधनों के अभाव में शिक्षक नेतृत्व पंगु हो जाता है। यह समस्या शिक्षक नेतृत्व के विकास में सबसे बड़ी बाधा होती है। 


4. सामाजिक दबाव -

 

प्रत्येक समाज में कार्यरत संस्था पर समाज की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष महत्वाकांक्षा जुड़ी रहती हैं जो शैक्षिक नेतृत्व पर निरंतर दबाव बनाए रखती हैं जो उसके विकास में बाधा होता है। 


5. राजनीतिक दबाव - 


आजकल संस्थाओं पर राजनीतिक दबाव सर्वाधिक बड़ी समस्या बन रही है। राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्ति संगठन पर अनावश्यक दबाव बनाने का प्रयास करते हैं जो कार्य क्षमता को प्रभावित करता है। शिक्षकों की नियुक्ति, स्थानांतरण, छात्र- प्रवेश परीक्षा परिणामों में नेताओं की सिफारिशें, शैक्षिक नेतृत्व के लिए बाधाएं उत्पन्न करती हैं। 


6. आन्तरिक प्रतिद्वन्द्विता - 


प्रत्येक संस्था में विभिन्न विचारधारा के लोग कार्य करते हैं। जब उनमें पारस्परिक हितों का टकराव होता है तो संस्था के विकास पर प्रभाव पड़ता है सभी लोग केवल अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं, जबकि दायित्वों की उपेक्षा की जाती है। ऐसी स्थिति में शैक्षिक नेतृत्व को उनमें सामंजस्य स्थापित करना पड़ता है जो कि एक दुष्कर कार्य साबित होता है यह समस्या भी शैक्षिक नेतृत्व के लिए बाधा बन जाती है। 


7.समयाभाव-


प्रत्येक संस्था में अनेक कार्यों को संचालित करने में शैक्षिक नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है वह संस्था की प्रत्येक योजना का आधारभूत स्तंभ होता है तथा इन सभी योजनाओं को एक निश्चित समय अंतराल में पूरा करना होता है। अतः शैक्षिक नेतृत्व को सभी योजनाओं के लिए समय विभाजन करना पड़ता है, जो उसकी कार्य कुशलता पर प्रभाव डालता है। अतः समय का अभाव भी नेतृत्व के लिए बढीं बाधा होती है। 


8.विभिन्न छात्रसंघो तथा शिक्षक संघो की भूमिका - 


प्रत्येक  संस्था में कार्यरत विभिन्न शैक्षिक मंचों की नकारात्मक भूमिका शैक्षिक नेतृत्व के लिए बाधा उत्पन्न करती हैं। छात्र संघ, शिक्षक संघ या अन्य कर्मचारी अपने उचित अनुचित मांगों को लेकर धरने, आंदोलन करते रहते हैं जो सिर्फ नेतृत्व के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। अतः यह स्थिति शैक्षिक नेतृत्व के विकास में बाधा होती हैं। 


9. प्रबंध समितियों का असहयोग - 


प्रत्येक निजी संस्थाओं के संचालन के लिए एक प्रबंध समिति होती हैं जो संस्था पर नियंत्रण रखती है। लेकिन अधिकतर समितियों में अयोग्य व शिक्षित व्यक्तियों का अभाव होता है जो केवल सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण समिति में होते हैं, वे शैक्षिक नेतृत्व का कोई सहयोग नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण शैक्षिक नेतृत्व को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 


10. संस्थागत प्रशासन - 


प्रत्येक संस्था के उचित विकास के लिए एक स्वच्छ प्रशासन की आवश्यकता होती है। विद्यालय की समय- सारणी से लेकर परीक्षा - परिणाम तैयार करने तक कार्यों का दायित्व विभाजन करना पड़ता है। जिसे लेकर कई बार प्रशासनिक गतिरोध पैदा हो जाता है, जो शैक्षिक नेतृत्व के विकास में बाधा बन जाता है। 



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