निर्देशन और परामर्श में अन्तर समझाइये।

 

निर्देशन एवं परामर्श में अन्तर

निर्देशन एवं परामर्श (Guidance and Counselling)

ब्लूम (M.L. Blum), बैलिंस्की (Balinsky), हाल (Hall) एवं लौरी (Lauwery) जैसे विद्वानों ने निर्देशन एवं परामर्श को समानार्थी माना है। ब्लूम तथ बैलिस्की के अनुसार "निर्देशन शब्द का ऐतिहासिक महत्व है, किन्तु आजकल यह शब्द अप्रचलित-सा हो चला है। शायद इसका कारण यह रहा हो कि प्रारम्भ में निर्देशन का कार्य सीधे एवं प्रत्यक्ष रुप से सलाह देने से सम्बन्धित था। आज निर्देशन की तकनीक एवं विधियों की सक्रिय भूमिका की अपेक्षाकृत कम आवश्यकता है और इसी कारण ‘परामर्श' शब्द निर्देशन की अपेक्षा अधिक अर्थपूर्ण है" इसी प्रकार हाल और लॉरी ने अपने विवेचन में निर्देशन की उन विधियों का जिक्र किया है जो प्रकारान्तर से परामर्श के अन्तर्गत आती है।

निर्देशन एवं परामर्श के अन्तर को समझने के लिए हमें दोनों की व्यवहारगत धारणाओं को समझना होगा। हम्फ्रीज और ट्रैक्सलर के अनुसार

(1) निर्देशन के अन्तर्गत वे सभी अनुभव क्रिया-कलाप समाहित हैं जो व्यक्ति को अपने को समझने, अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने एवं अधिक प्रभावशाली ढंग से उन्नति की योजना प्रस्तुत करने में सहयोग देते हैं।

(2) परामर्श की व्याख्या करते हुए हम्फ्रीज तथा टेक्सलर लिखते हैं कि परामर्श विद्यार्थियों में निहित सम्भावनाओं को उच्चतम स्तर तक विकसित करने में दी गई सहायता के वैयक्तीकरण का प्रक्रम है। सहायता के वैयक्तीकरण का अभिप्राय है- सहायता को एक व्यक्ति तक सीमित रखना। 

(3) निर्देशन एवं परामर्श के अन्तर को स्पष्ट करते हुए दोनों विद्वानों ने कहा है, "निर्देशन एवं परामर्श दोनों एकार्थवाची शब्द नहीं है। परामर्श निर्देशन में की समाविष्ट है। परामर्श की प्रक्रिया में साक्षात्कार एवं मूल्यांकन का प्रयोग साधन के रूप में होता है।" 

निर्देशन के स्वरूप और विस्तार का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि हम अपनी आवश्यकताओं और समस्याओं का समुचित ज्ञान प्राप्त करके समाज और देश की सेवा यथाशक्ति कर सके। यह जीवन का लक्ष्य केवल धन कमाना नहीं है, वरन् अर्जित धन का कुछ प्रतिशत मानव सेवा के लिए भी अर्पित करना है। मनुष्य का धर्म है कि वह अपने आचार-व्यवहार द्वारा एक ऐसा आदर्श उपस्थित करे जो व्यक्तित्व के विकास में पूर्णरूप से सहायक हो। 

निर्देशन एक व्यापक प्रक्रिया है। परामर्श इसका महत्वपूर्ण अंग है। परामर्श के बिना निर्देशन का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। परामर्श में विभिन्न विधियों द्वारा व्यक्ति का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाता है। इन विधियों में प्रमुख है, विद्यालय की विभिन्न स्थितियों में उपबोध्य (कौसिली) का निरीक्षण, घर पर मिलना, स्वास्थ्य-परीक्षा, परीक्षण एवं मूल्यांकन तथा साक्षात्कार आदि।

सभी विधियों का उद्देश्य एक है- उपबोध्य को जितनी गहराई से सम्भव हो, समझाना। परामर्श की तीसरी विशेषता यह है कि इसका केन्द्र-बिन्दु विशिष्ट व्यक्ति है, उसके विकास में आये हुए अवरोधों को जानना और उन्हें दूर करने में सहायक होना। इस प्रकार परामर्श में उपबोध्य और परामर्शदाता की घनिष्ठता स्वत: सिद्ध है।

इस आधार पर हम कह सकते है कि निर्देशन की प्रक्रिया परामर्श की प्रक्रिया से व्यापक है। परामर्श के केन्द्र में एक समय में केवल एक व्यक्ति होता है जबकि निर्देशन सामूहिक भी होता है। परामर्श मुख्यत: व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य एवं भावनात्मक समस्याओं को हल करने में व्यक्ति को सहायता देता है और व्यक्ति के परिवेश से ही सम्बद्ध रहता है। जबकि निर्देशन का सम्बन्ध व्यक्तित्व समस्याओं के साथ-साथ शैक्षिक, व्यावसायिक एवं अन्य समस्याओ से भी होता है। जैसा ऊपर कहा गया है, परामर्श निर्देशन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग है, इसलिये हमें इन्हें अलग-अलग करने के बजाय एक-दूसरे का पूरक मानना चाहिए।

य़ह भी पढ़े -                                                                   1. निर्देशन का अर्थ, परिभाषा व प्रकृति तथा विस्तार।         2. समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषा।.                             3. बालक के विकास में विद्यालय की भूमिका।.                     



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