परामर्श क्या है- परिभाषा, प्रक्रिया तथा प्रयोजन। परामर्श में कठिनाइयाँ।

 

परामर्श क्या है

परामर्श की परिभाषा (Definition of Counseling)

प्राचीन काल से ही परामर्श मानव समाज में किसी न किसी रूप में विद्यमान रहा है। समय-समय पर अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषा करने का प्रयत्न किया है। वेबस्टर(Webster) ने अपने शब्द-कोष में परामर्श का अर्थ 'पूछताछ, पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक आदान-प्रदान' बताया है। वेबस्टर द्वारा दिये गये उपर्युक्त अर्थ से परामर्श का स्वरुप स्पष्ट नहीं हो पाता।

रॉबिन्सन ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए परामर्श की व्याख्या इस प्रकार की है- 'परामर्श शब्द दो व्यक्तियों के सम्पर्क की उन सभी स्थितियों का समावेश करता है जिनमें एक व्यक्ति को उसके स्वयं के एवं पर्यावरण के बीच अपेक्षाकृत प्रभावी समायोजन प्राप्त करने में सहायता की जाती हैं।"

कार्ल रोजर्स (Carl Rogers) के अनुसार- परामर्श “एक निश्चित रूप से निर्मित स्वीकृत सम्बन्ध है जो उपबोध्य को अपने को उस सीमा तक समझने में सहायता करता है जिसमें वह अपने ज्ञान के प्रकाश में विद्यात्मक कार्य में अग्रसर हो सके।"


परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता (Need for Counselling Process) -

परामर्श में मूल आवश्यकता आमने-सामने बैठ कर समस्याओं को समझने और हल करने की है। इसमें परामर्श प्राप्त करने वाला तथा परामर्श देने वाला दोनों सम्मिलित होते है। परामर्श की परिभाषा और अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए उसे तीन स्तरों में व्यक्त कर सकते है-

(1) अनौपचारिक परामर्श ( Informal Counselling) - इसमें, किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन यदि परामर्शदाता को प्रशिक्षण दिया जाये तो इस प्रकार के परामर्श को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।

(2) सामान्य परामर्श (Non-Specialist Counselling)- व्यावसायिक व्यक्तियों, जैसे- डाक्टरों, अध्यापकों और वकीलों के काम का भाग बनाकर प्राप्त किया जा सकता है। 

(3) व्यावसायिक परामर्श ( Professional Counselling)- यह परामर्श पूर्ण रूप से प्रशिक्षित व्यावसायिक व्यक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रशिक्षित व्यावसायिक परामर्शदाता पूर्ण रूप से व्यावसायिक, नीतिशास्त्र को मानने वाला हो तथा उसमें क्षमता हो कि वह दूसरे व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण निर्णय ले सके।

तात्पर्य यह है कि परामर्शदाता तब तक उपयुक्त परामर्श नहीं दे सकता जब तक कि वह काउंसिली को अच्छी तरह नहीं जानता।

अत: स्पष्ट है- परामर्श का मूल तत्व दो व्यक्तियों के बीच ऐसा सम्पर्क है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को स्वयं को समझने में सहायता देता है। परामर्श के दर्शन को समझने से पूर्व हम दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए- मानवीय सम्बन्ध एवं सहायता (Human relationship and help)।

(i) परामर्श में परामर्शदाता (Counseller ) एवं (ii) उपबोध्य ( Counsellee)

आमने-सामने होते हैं तथा परामर्शदाता उपबोध्य को उसकी समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता देता है। परामर्श एक ऐसी सेवा है जिसका उद्देश्य भिन्न-भिन्न आयु के लोगों की समस्याओं के समाधान में सहायता देना है। इस प्रकार एक समस्याग्रस्त व्यक्ति परामर्शदाता के सामने बैठकर अपनी समस्याओं को उसकी सहायता से स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है। 

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परामर्श की प्रक्रिया ( Process of Counselling) 

परामर्श एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत छात्र या शिक्षार्थी, एक व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति (परामर्शदाता) के साथ विशिष्ट उद्देश्य को संस्थापित करने के लिए कार्य करता है तथा ऐसे व्यवहारों को सीखता है जिनका अर्जन इन विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। परामर्श की सफलता के लिए उसमें निम्न चार आधारभूत मान्यताओं का होना आवश्यक है

(1) इच्छा जानना- परामर्श के लिए यह स्वीकार करना आवश्यक है कि छात्र परामर्श की प्रक्रिया में भाग लेने का इच्छुक है।

(2) परामर्शदाता का अनुभवी होना- परामर्शदाता के प्रभावशाली ढंग से कार्य करने के लिए उसका प्रशिक्षित, अनुभवी एवं कार्य के प्रति रुझान रखने वाला होना आवश्यक है।

(3) आवश्यकता की पूर्ति- परामर्श के द्वारा व्यक्ति की तात्कालिक एवं भविष्य-सम्बन्धी, दोनों ही प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए। 


परामर्श की प्रक्रिया के मुख्य अंग (Three Parts of Counselling Process) -

परामर्श की प्रक्रिया के तीन मुख्य अंग है- परामर्श के लक्ष्य, उपबोध्य एवं परामर्शदाता। परामर्श की प्रक्रिया का प्रमुख अंग लक्ष्य निर्धारण है। यह लक्ष्य परामर्शदाता एवं उपबोध्य (Counsellee) के परिवेश एवं समाज सापेक्ष्य होते हैं। दूसरे शब्दों में, कह सकते हैं कि परामर्शदाता एवं उपबोध्य के सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक परिवेश में जो मूल्य (Values) एक आदर्श प्रचलित होंगे, उनके अनुसार ही परामर्श के लक्ष्यों का निर्धारण होगा। लक्ष्यों के निर्धारण में व्यक्ति की आवश्यकताओं एवं रुचियों को उसके परिवेश के सन्दर्भ में देखना होता है। एक प्रकार से परामर्श का लक्ष्य उपबोध्य को मूल्यों के पुनरान्वेषण (Rediscovery) में सहायता देना होता है।


परामर्श में कठिनाइयाँ (Difficulties in Counselling) -

भारतीय परिवेश में परामर्श-कार्य करना कठिन है। परम्परागत भारतीय विद्यालयों में परीक्षा और पुस्तकीय ज्ञान का अधिक महत्व है और व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का कम। अत: पहली कठिनाई है परामर्श के प्रति अभिभावकों और अध्यापकों की उदासीनता।

दूसरी कठिनाई है कथनी और करनी में अन्तर। शिक्षा-दर्शन आदर्शवादी है। भारतीय शिक्षा आदर्शवादी है। लेकिन उसके कार्य उसके दर्शन के अनुरूप नहीं होते। हम चाहते हैं कि शिक्षा व्यक्ति के समग्र विकास में सहायक हो। लेकिन शिक्षा-व्यवस्था, इसमें बाधक है।

तीसरी कठिनाई है प्रशिक्षित परामर्शदाताओं का अभाव। प्रत्येक हाई स्कूल में जब प्रशिक्षित परामर्शदाता होंगे, तब छात्रों की सहायता सम्बन्ध होगी। अत: यह आवश्यक है कि भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में परामर्श को उचित स्थान दिया जाय। 


विद्यार्थियों के लिए परामर्श का प्रयोजन (Purposes of Students Counselling) -

डन्समूर (Dunsmoor) तथा मिलर (Miler) ने छात्र-परामर्श के आठ प्रयोजन बताये हैं। इन लेखकों के विचार से छात्र-परामर्श का लक्ष्य विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाने में सहायता करना है। 


ये आठ प्रयोजन निम्नलिखित हैं

1. विद्यार्थी को उसकी सफलता के महत्व के विषयों की जानकारी देना।

(To give the student information on matters important to his success.)

2. विद्यार्थी के बारे में वे सूचनाएँ प्राप्त करना जो उसकी समस्याओं के समाधान में सहायक हों। (To get informations about student which will be of help in solving his problems.) 

3. विद्यार्थी और अध्यापक के बीच पारस्परिक समझ की भावना स्थापित करना।(Mutual Understanding) 

4. विद्यार्थी को अपनी कठिनाइयों का हल करने की योजना बनाने में सहायक होना।

(To help the student work out a plan for solving his difficulties.) 

5. विद्यार्थी का अपनी रुचियों, योग्यताओं, झुकावों तथा अवसरों इत्यादि को समझकर अपने को अधिक अच्छी तरह जानने में सहायता करना। (To help the student know hiself/herself better his/her interests, abilities and opportunities) 

6. विशेष योग्यताओं तथा सही दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित एवं विकसित करना। (To encourage and develop special abilities and right attitudes.) 

7. शैक्षिक प्रगति के लिए समुचित प्रयास करने की प्रेरणा देना। ( To inspire successful endeavour toward attainment.)

8. शैक्षिक एवं व्यावसायिक चयन की योजना बनाने में छात्र की सहायता करना। (To assist the student in planning for education and vocational choices)


डन्समूर एवं मिलर द्वारा प्रस्तुत छात्र-परामर्श के जिन प्रयोजनों का उल्लेख किया गया हैं, वे कुछ अंशों तक सामान्य परामर्श का आधार भी बन सकते हैं। परामर्श की प्रक्रिया (Process) जिन प्रयोजनों को लेकर चलती है उनकी पूर्ति तभी सम्भव है जब प्रक्रिया के अन्य अंग उपबोध्य (Client) तथा परामर्शदाता के सम्बन्ध ठीक प्रकार से निर्धारित हों। इसलिए उपबोध्य और परामर्शदाता के सम्बन्धों की जानकारी आवश्यक है।

परामर्श निर्देशन का अनिवार्य एवं अपरिहार्य पक्ष है। रोजर्स (Rogers) ने परामर्श को व्यक्ति की मनोवृत्ति तथा व्यवहार परिवर्तन के लिए दी जाने वाली सहायता के रूप में माना है। गिलबर्ट (Gilbert) ने इसे दो व्यक्तियों के मध्य होने वाली गतिशील प्रक्रिया माना है। मायर्स (Myers) परामर्श को दो व्यक्तियों के मध्य होने वाले सम्बन्धों के रूप में मानता है। इसमें एक व्यक्ति दूसरे की समस्या का समाधान करने में सहायता पहुँचाता है।

यह भी पढ़े -                                                                   1. निर्देशन और परामर्श में अन्तर.                                       2. शिक्षा समानता अधिकार 


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