रसखान का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
रसखान हिन्दी भक्ति-काव्य की कृष्णाश्रयी काव्यधारा के एक विशेष और लोकप्रिय कवि हैं । इनकी प्रेमाभिव्यंजना का प्रभाव आज भी इनके पदों को पढ़कर और इसमें तन्मय हो जाने से स्पष्ट हो जाता है। रसखान वास्तव में प्रेमरण की खान ही थे।
1) जन्म तिथि व स्थान- यह विचित्र सत्य है कि अन्य भक्तिकालीन रचनाकारों के समान ही रसखान के जन्म-समय, शिक्षा-दीक्षा, कार्य-व्यवसाय, निधन काल आदि के सम्बन्ध में कई प्रमाणिक साक्ष्य अभी तक उपलब्ध नहीं है, फिर भी विद्वानों ने उनकी रचनाओं से कुछ संकेत-सूत्र-ग्रहण कर उनके जीवन-वृत्त के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं । उनका जन्म 1533 ई. के आसपास स्वीकार किया जा सकता है। कुछ समय पहले तक यह माना जाता रहा कि 'रसखान' पिलानी के सैयद इब्राहिम का ही नाम था, किन्तु परवर्ती अनुसन्धानों के आधार पर यह धारणा असत्य ही निकली। 'प्रेम-वाटिका में स्वयं कवि के द्वारा दिल्ली छोड़कर गोवर्धन-धाम जाने के उल्लेख से उनका जन्म-स्थान और आरम्भिक निवास दिल्ली अथवा उसके आस-पास ही मानना उचित होगा।
2) दीक्षा- प्रसिद्ध है कि रसखान ने गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से वल्लभ-सम्प्रदाय के अन्तर्गत दीक्षा ली थी। उनके काव्य में अन्य वलल्भानुयायी कृष्ण-भक्त कवियों जैसी प्रेम माधुरी एवं भक्ति-शैली से इस बात की पुष्टि होती है। 'दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता' में भी उन्हें वल्लभ सम्प्रदायानुयायी कहा गया है। 'मूल गुसाई चरित, में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा स्वरचित 'राम चरित मानस' की कथा सर्वप्रथम रसखान को सुनने का उल्लेख है
"जमुना तट पैत्रय वत्सर तौ, रसखानसिंह जाई सुनावत भी।"
3) निधन- इनकी निश्चित आयु के विषय में कोई निश्चित मत नहीं हैं। अधिकांश विदानों ने इनको 85 वर्षों तक जीवित होना स्वीकार किया है। इतनी ही अवस्था जीवन जीने के उपरान्त इनका निधन हो गया। मथुरा नगरी से लगभग 6 मील दूर दक्षिण-पूर्व की एक पुराने टीले पर स्थित लाल पत्थर की एक बारहदरी को इनकी समाधि बताया जाता हैं ।
4) रचनाएँ- रसखान की रचनाओं के विषय में लगभग सभी विद्वान एकमत हैं। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- i) सुजान रसखान,
ii) प्रेमवाटिका, iii) दानलीला,
iv) स्फुट छन्द, v) संदिग्ध छन्द।
रसखान की काव्यगत विशेषताओं को बताइए।
रसखान की काव्यगत विशेषताएँ- मध्यकालीन कवियों में अपनी एक अलग पहचान कायम रहती हैं। इनकी काव्यगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं -
1) भाव-पक्ष, 2) कला-पक्ष
० भाव-पक्ष- रसखान की भावपक्ष विशेषताएँ विभिन्न है जो इस प्रकार से हैं-
1) भक्ति-भावना- रसखान की भावपक्ष में नवधा भक्ति-भावना का पूर्णरूपेण उल्लेख नहीं है । ऐसा इसलिए कि रसखान किसी प्रकार की बँधीबँधाई परम्परा पर चलने वाले कवि नहीं हैं। ये प्रेमोमंग के कवि हैं, इसलिए इनकी कविताओं में माधुर्य भक्ति-भावना का ही आधिक्य हैं।
2) रुप वर्णन- माधुर्य भक्ति के जो तीनों रुप में अर्थात् रुप-वर्णन विरह-वर्णन और पूर्णतया आत्म-समर्पण, ये सभी रुप रसखान के काव्य में प्राप्त होते है।
3) वियोग वर्णन- माधुर्य भक्ति का दूसरा अंग है, वियोग-वर्णन रसखान में वियोग वर्णन का सुन्दर और स्वस्थ चित्रांकन किया है।
4) माधुर्य भक्ति का तीसरा अंग हैं- पूर्णरुपेण आत्म-समर्पण रसखान की कविताओं में यह विशेषता देखी जा सकती है।
5) दर्शन- रसखान का दर्शन प्रेम-दर्शन है। यह भारतीय दर्शन के अनुकूल है। यह प्रेम की अधिकता है जो अत्यन्त शुद्ध और परिपक्व हैं। यह विविध और विस्तारपूर्वक प्रतिपादित हुआ हैं। प्रेरणाजन्य होना इस प्रेम दर्शन की बहत बड़ी विशेषता हैं।
कला-पक्ष- रसखान का कला-पक्ष सामान्य और सहज होते हुए भी चमत्कारिक हैं। इसमें विविधता और अनेकरुपता हैं। इसके विविध पहलुओं पर निम्नलिखित प्रकाश डाला जा रहा है-
भाषा- रसखान की भाषा कसौटी पर तुली हुई खरी भाषा है। रसखान ने शब्दों का चुनाव अत्यन्त सूझ-बूझ के साथ किया है। इसके शब्द चयन में भावाभिव्यक्ति का पूर्ण स्वरुप प्राप्त होता हैं। इसके लिए रसखान सक्षम और सफल दिखाई देते हैं।
शैली- रसखान की शैली भावात्मक और चित्रात्मक दोनों ही हैं। यह गेय और गीति पद्धति पर आधारित है, अतएव रोचक और सरस है।
रस- रसखान के काव्य में मुख्य रुप से श्रृंगार रस हैं। श्रृंगार रस के दोना पक्षों अर्थात् संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार (विप्रलम्भ श्रृंगार) का अधिक से अधिक वर्णन किया हैं।
छन्द- रसखान ने गिने-चुने शब्दों की रचनाएँ की हैं, रसखान द्वारा प्रयुक्त हुये छन्दों में मुख्य रुप से दोहा, सवैया हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार रसखान ने संदिग्ध और असंदिग्ध छन्दों की रचना की हैं। इस प्रकार छन्दों की संख्या 334 बताई जाती हैं।
अलंकार- रसखान ने मुख्य रुप से उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, अतिश्योक्ति आदि अलंकारों के प्रयोग किए।
संक्षेप में हम कहेंगे कि रसखान कृष्ण भक्ति काव्यधारा के एक सशक्त लोकप्रिय कवि हैं। इनकी कविताओं में निम्नतम पाठक अपने को धन्य और सार्थक आज भी स्वीकारते हैं।