बिहारी के काव्य का मूल्यांकन भावपक्ष और कलापक्ष की दृष्टि से

बिहारी की अनुभूतियाँ जितनी सशक्त हैं, उनका अभिव्यक्ति कौशल भी उतना ही सफल है उनके काव्य में भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों का सन्तुलित समन्वय दिखाई पड़ता हैं, जो उनकी काव्य दृष्टि का परिचायक हैं। 


1) भाव-सौंदर्य-रस सामग्री-

बिहारी सतसई श्रृंगार काव्य हैं। श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का सम्यक् और सम्पूर्ण रुप मिलता है। बिहारी का संयोग श्रृंगार वर्णन अत्यन्त स्वाभाविक है। संयोग श्रृंगार के अन्तर्गत हाव-भाव, अनुभाव, नायिका पद, दूती, षट्ऋतु आदि सभी का विवेचन है। बिहारी ने स्वेद रुप रोमांच आदि साहित्यिक भावों के सुंदर वर्णन किये हैं। 


2) बिहारी का वियोग वर्णन-

वियोग वर्णन कहीं-कहीं हास्यास्पद अवश्य हो गया हैं, उनकी अतिशयोक्तियाँ खिलवाड़-सी बन जाती हैं, निम्न उदाहरणों में देखिए-

i) आड़े दे आले बसन, जाड़े हूँ की राति । साहसु ककै सनेह बस सखी समय ढिग जाति॥

किन्तु सर्वत्र ऐसा नहीं है। निम्न उदाहरण देखिए -

ii) हौ ही बोरी बिरह बस, कै बोरी सब गाऊँ कहा जानिके कहत हैं, ससिहि सीतकर नाऊँ।। 

वहाँ नायिका के विरह के प्रभाव का वर्णन सर्वथा में स्वाभाविकता हैं। 


3) सौन्दर्य वर्णन-

बिहारी के सौन्दर्य वर्णन की अपनी विशेषता है। बिहारी सौन्दर्य वर्णन में आभूषणों को महत्व नहीं देते । ये दरपन के से जाँचे या दुर्गपग पोंछने के लिए पायन्दाज हैं। बिहारी व्यापक सौन्दर्य का व्यापक चित्र प्रस्तुत करते हैं, इनको नायिका के सौन्दर्य का चित्र खींचने से न जाने कितने चतुर चित्रकार भी हार गए। उनकी नायिका 'अंग-अंग छबि की लपट उपटत जाति अछेह' का व्यापक सौन्दर्य लेकर उपस्थित होती हैं। सौन्दर्य में बिहारी रुचि को महत्व देते हैं।

समैं, समैं सुन्दर सबै, रुप कुरुप न कोई। मन को रुचि जेती जितै, तित तेती रुचि होइ। 


4) कलापक्ष-अलंकार योजना-

बिहारी के कुछ दोहों में शब्दालंकारों की कलाबाजी से शाब्दिक चमत्कार मात्र ही मिलता हैं, परन्तु उसमें भाव की गम्भीरता अवश्य हैं, चाहे अर्थ की गम्भीरता कम हो।

अज्यौ तरयौना ही रह्यों, श्रुति सेवक इक अंग । नाक बास बेसरि लह्यो, बसि मकुतनु के संग ॥

यहाँ श्लेष का चमत्कार है । तरयोना = 1) कान का आभूषण 2) तरा तही। श्रुति = कान । वेदशास्त्र । नाक 1) नासिका, 2) स्वर्ग/मुक्तन - 1) मोतियो, 2) मुक्त लोग । बिहारी कहीं-कहीं शाब्दिक चमत्कार के द्वारा बड़ा ही शिष्ट हास्य उपस्थित कर देते हैं।


चिरंजीवी जौरी जुरे, क्यों न सनेह गम्भीर । को घटि, ये वृषा भानुजा, वे हलधर के बीर॥

इसमें श्लेष का चमत्कार है। बिहारी के काव्य में अलंकार योजना कविता कामिनी का अंग बन गई हैं। अलंकार भावाभिव्यक्ति में सहायक हैं।

असंगति, विभावना, उपमा, विशेषोक्ति, विरोधाभास, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों द्वारा बिहारी ने सुन्दर भावाभिव्यक्ति की हैं। 


5) समास गुण-

बिहारी की काव्यकला की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समास शक्ति चरमोत्कर्ष पर पहुँची हुई हैं । वे दोहो जैसे छोटे छन्द में बहुत-से चित्र बड़ी सफलता से गुम्फित कर देते है। निम्न दोहे में सिनेमा की रील-सी खुलती चली जाती हैं-

कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात । भरे भौंन में करत हैं, नैनहि ही सों बात॥ 


6) बहुज्ञता का प्रदर्शन-

बिहारी को अनेक विषयों की अच्छी जानकारी थी। ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, इतिहास पुराण आदि का उन्हें ज्ञान था। अपने दोहों में उन्होंने इन विषयों का प्रयोग किया हैं। 


7) प्रकृति चित्रण-

बिहारी ने प्रकृति का आलम्बन रुप में चित्रण करके अनेक मार्मिक दोहे लिखे हैं, जिनमें प्रकृति का साकार चित्र उपस्थित हो जाता हैं।

"कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ ।

जगत तपोवन सा किया, दीरघ दाघ निदाघ ॥" 


8) भाषा-

बिहारी की भाषा टकसाली विशुद्ध ब्रज भाषा है। उसकी भाषा में गागर में सागर का गुण हैं । शब्द चित्र उतारने में सफल है -

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय । सौंह करै भौहनि हँसे, दैन कहै नटि जाय॥


मुहावरे और लाक्षणिक प्रयोग भाषा को सजीवता प्रदान करते हैं

i) सूधे      पाँय                 न                        परत, 

ii) गई      मूठि                 सी                      मारि, 

iii) बूढ़े      बहैं                हजार, 


9) भाषा माधुर्य-

बिहारी की भाषा साफ-सुथरी ब्रजभाषा है तथा उनके प्रत्येक दोहे में कोई-न-कोई अलंकार अवश्य मिल जाता हैं। बिहारी की भाषा माधुर्य गुण युक्त है । वह कंकन किंकम नुपूर ध्वनि की तरह मन मोह लेती है शब्दावली चयन से भाव स्वयं ही ध्वनित होने लगते हैं।


निष्कर्ष- उपयुक्त विवचन के आधार पर कहा जा सकता है कि बिहारी का सबसे बड़ा गुण यह है कि उन्होंने भाषा की समास शक्ति से दोहों में गागर में सागर भर दिया है। उनके दोहों में ब्रजभाषा का परिष्कृत और निखरा हुआ मिलता है। पैनी दृष्टि, अनोखी सूझ, पद लालित्य और ब्रज अर्थ व्यंजना के कारण बिहारी के दोहे हृदय पर सीधा प्रभाव डालते हैं। वे रीतिबध्द काव्य धारा के श्रेष्ठ कवि हैं। 

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