विद्यालय प्रबंधन में भौतिक संसाधन का महत्व ।

 विद्यालय प्रबंधन में भौतिक संसाधन का महत्व 

विद्यालय प्रबंधन में भौतिक संसाधन का महत्व


विद्यालय भवन एक व्यापक शब्द है। इसके अंतर्गत विद्यालय की स्थिति, विद्यालय का भवन, खेल का मैदान तथा फर्नीचर आदि सभी वस्तुएं आती है। अतः आवश्यक है कि विद्यालय भवन का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया जाए। उसके लिए उपयुक्त स्थान, स्थिति, भूमि एवं वातावरण आदि का ध्यान रखना अनिवार्य है। यह भौतिक संसाधन के अन्तर्गत आते हैं। 


हमारे देश में विद्यालय भवन संबंधी समस्या प्रारंभ से ही है। जब से अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था लागू हुई है, तब से यह समस्या और भी गंभीर हो गई है। विद्यालयों में बहुत कम भवन ऐसे मिलेंगे उपयुक्त एवं पर्याप्त सुविधाएं लिए हुए हो। अतः भवन-निर्माण पर ध्यान देना अति आवश्यक है। 

भवन-निर्माण का निर्णय लेने पर सर्वप्रथम स्थापत्य कलाकार की नियुक्ति करनी चाहिए, जो भली प्रकार भवन-निर्माण के कार्य-भार को वहन कर सकता हो। वह ऐसा व्यक्ति हो जो इंजीनियरों तथा विद्यालय प्रबंधकों के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सकता हो। 


विद्यालय भवन का निर्माण करते समय स्वास्थ्य संबंधी बातों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। प्रत्येक कक्ष में वायु एवं प्रकाश के लिए उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए पर्याप्त मात्रा में खिड़की एवं रोशनदान होने चाहिए। एक कमरे से दूसरे कमरे में आने-जाने की भी व्यवस्था हो। सुरक्षा की दृष्टि से ऐसी व्यवस्था हो कि आवश्यकता पड़ने पर विद्यालय को कुछ मिनटों में खाली किया जा सके। इसके साथ-साथ निर्माण में मितव्ययिता का भी ध्यान रखा जाए। 


विद्यालय - भवन निर्माण सम्बन्धी योजनाएं निम्नलिखित है - 

(1) खुली हुई योजना, (2) बन्द योजना। 

खुली हुई योजना - खुली हुई योजनाओं में भिन्न-भिन्न रूप वाली इमारतों का उपयोग किया जाता है, जैसे - H, E, L, T, I, Y तथा U।


बन्द योजना - बंद योजनाओं में तीन रूप आते हैं - (1) ठोस आयात, (2) आयत- इसके बीचों-बीच हॉल तथा अन्य कक्षों का निर्माण होता है। (3) शून्य आयत- इसमें बीच में खाली स्थान रहता है तथा उसके चारों ओर इमारत बनायी जाती हैं। आजकल खुली योजनाओं का ही अधिक प्रचलन है। इसमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-


भीतरी प्रांगण वाला भवन- इस प्रकार के प्रांगण वाले भवन में निम्नलिखित कक्ष होते हैं- प्रधानाचार्य का कक्ष, अध्यापक कक्ष, कार्यालय, कक्षा एवं प्रयोगशाला, बरामदा तथा प्रांगण। 

E-आकार वाला भवन - इनमें निम्नलिखित कक्ष होते हैं तथा इसका आकार E जैसा होता है- प्रधानाचार्य कक्ष, अध्यापक कक्ष, हॉल, कक्षा के कमरे तथा बरामदा। 

U-आकार वाला भवन - U- आकार वाले भवन में निम्नलिखित कक्ष होते हैं - प्रधानाचार्य का कक्ष, अध्यापक कक्ष, कार्यालय, कक्षा के कमरे तथा बरामदा। 

H-आकार वाला भवन - इस आकार वाले भवन में निम्नलिखित कक्ष होते हैं- प्रधानाचार्य का कक्ष, अध्यापक कक्ष, कार्यालय, हाल एवं मंच, कक्षा के कमरे, बरामदा, पुस्तकालय कक्ष, घास का मैदान।

 

विद्यालय भवन योजना चाहे E प्रकार की हो, चाहे H प्रकार की अथवा भीतरी प्रांगण वाले भवन की, परंतु इस प्रकार के भवन में उपयुक्त कक्षा के प्रकोष्ठ हो, अध्यापकों के प्रकोष्ठ हो, भोजन - कक्ष, चिकित्सक कक्षा, मल-मूत्रालय, व्यायामशाला तथा जलाशय आदि की भी व्यवस्था हो। 


सर्वप्रथम विद्यालय भवन का प्लान तैयार कर विशेषज्ञों द्वारा उसका अनुमोदन करा लेना आवश्यक है। तत्पश्चात उसके निर्माण कार्य का ठेका किसी अनुभवी ठेकेदार को देना चाहिए।


विद्यालय भवन का निर्माण करते समय निम्नलिखित आवश्यक बातें व तथ्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए - 

नीवं, दीवारें, छतें, फर्श, विद्यालय की मंजिलें, खेल का मैदान, अध्यापक कक्ष, शौचालय और मूत्रालय, कक्षा-कक्ष, वस्त्र परिवर्तन के लिए कक्ष, प्रवेश द्वार, वायु प्रसारण की व्यवस्था, प्रकाश व्यवस्था, जल व्यवस्था, डॉक्टरी निरीक्षण कक्ष, प्रधानाचार्य का कमरा तथा अन्य कमरे। 


विद्यालय उपकरण तथा साज-सज्जा(School implements and equipment) 


विद्यालय की साज-सज्जा के अंतर्गत मुख्य रूप से विद्यालय का फर्नीचर आता है। विद्यालय में उपयुक्त फर्नीचर होना चाहिए, जिसमें छात्र सुविधापूर्वक अध्ययन कर सकें। सामान्य प्राथमिक विद्यालयों में बालकों के बैठने के लिए टाट-पट्टी का प्रयोग किया जाता है। परंतु वर्तमान समय में अनेक विद्यालयों में कुर्सी तथा डैस्क का प्रयोग किया जाने लगा है। इस संबंध में कुछ बातों का ध्यान रखना परम आवश्यक है जैसे - (क) फर्नीचर तथा (ख) शिक्षा सामग्री। 

(क) फर्नीचर 

मेज-कुर्सी - प्रत्येक कक्षा में छात्रों की संख्या के अनुसार मेज तथा कुर्सियों का प्रबंध होना चाहिए। जहां तक हो सके इस बात का ध्यान रखा जाए कि एक सीट पर दो छात्र न बेठे। प्रत्येक छात्र के लिए अलग-अलग मेज-कुर्सी होनी चाहिए। इससे छात्रों को लिखने तथा पढ़ने में सुविधा रहती हैं। छात्रों के लिए अलग-अलग मेज कुर्सी का होना व्यय साध्य तो होगा परंतु बालकों के लिए यह असुविधाजनक है तथा उन्हें अनेक संक्रामक रोगों से बचाया जा सकता है। अनेक स्थान पर जुड़वा डैस्को का भी प्रयोग किया जा सकता है। इससे डैस्क तथा कुर्सी एक साथ जुडी रहती हैं तथा एक ही स्थान पर जमी रहती हैं। इस प्रकार की डैस्को को आगे-पीछे तथा ऊपर-नीचे करने की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि फर्नीचर उपयुक्त ढंग का होगा तो छात्रों को आसन संबंधी दोषों से बचाया जा सकता है। अनुपयुक्त फर्नीचर का छात्रों के नेत्रों तथा शरीर पर कुप्रभाव पड़ता है। विद्यालय में बालकों के व्यक्तित्व के विकास में फर्नीचर का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।

अच्छी डैस्क की विशेषताएं - अच्छी डैस्क की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं - डैस्क का तल छात्रों के सीने के समांतर होना चाहिए। इससे छात्रों को लिखने या पढ़ने में शरीर झुकाना नहीं पड़ता। डैस्क में 15 डिग्री का ढाल होना चाहिए। इससे पढ़ते समय 45 डिग्री का तथा लिखते समय 15 डिग्री ढाल बनाया जा सकता है। डैस्क की ऊंचाई फर्श से इतनी ऊँची हो जिससे बालक भूमि के समांतर बैठ सके। जहां तक संभव हो सके जुड़वा डैस्क का प्रयोग न किया जाय। डैस्क ऐसी हो जिसे बालकों की ऊंचाई के अनुकूल ऊंचा- नीचा किया जा सके।

(ख) शिक्षा सामग्री 

       विद्यालय में फर्नीचर के अतिरिक्त अन्य शैक्षिक सामग्री का भी महत्व होता है। शिक्षण करते समय अध्यापक को इस सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। इसमें निम्नलिखित सामग्री सम्मानित हैं-

1- श्यामपट्ट(Black board) - शिक्षण में श्यामपट्ट का विशेष महत्व होता है। कक्षा में शिक्षण करते समय अध्यापक को इसकी अत्यधिक आवश्यकता होती है। इसकी सहायता से अध्यापक अपना पाठ सुगमतापूर्वक पढ़ा लेता है। यह शिक्षण को आगे बढ़ाने में बहुत सहायक होता है। श्यामपट्ट के कई प्रकार होते हैं -

  दीवार श्यामपट्ट-इस प्रकार का श्यामपट्ट दीवार में बना रहता है यह सीमेंट से बनाया जाता है। यह श्यामपट्ट अन्य श्यामपट्टो से सस्ता भी पड़ता है। इसके प्रयोग में कुछ कठिनाई अवश्य होती है। जब श्यामपट्ट पर नीचे तक लिख दिया जाता है तो नीचे के शब्द बालकों को दिखाई नहीं देते। छात्र बार-बार खड़े होकर पूछते हैं

 लपेट श्यामपट्ट-इस प्रकार का श्यामपट्ट प्राय प्रशिक्षण विद्यालय में प्रयुक्त किए जाते हैं। प्रशिक्षण विद्यालय के छात्रों द्वारा इनका प्रयोग किया जाता है। यह काले कपड़े का होता है। इस श्यामपट्ट में यह सुविधा रहती है कि शिक्षक अपने घर से चित्र मानचित्र बना लेता है। सारांश आदी भी लिखकर ला सकता है। इसके द्वारा समय की बचत हो जाती हैं कक्षा में अध्यापन के समय जब आवश्यकता होती है, तभी इसका प्रयोग किया जा सकता है। 

फ्रेमयुक्त दीवार श्यामपट्ट - यह श्यामपट्ट लकड़ी से जुड़ा हुआ होता है, जो दीवार में हुको के सहारे टिका रहता है। 

स्लाइडिंग दीवार श्यामपट्ट - यह श्यामपट्ट घिरी पर टिका रहता है तथा इसमें दो लकड़ी के तख्ते होते हैं। इसे घिरी के सहारे आवश्यकतानुसार ऊपर से नीचे खिसकाया जा सकता है। 

2- विज्ञान सामग्री - आज के वैज्ञानिक युग मे प्रत्येक विद्यालय में विज्ञान प्रशिक्षण से संबंधित सामग्री होनी चाहिए विज्ञान सामग्री उपलब्ध करने के लिए, विभाग द्वारा विज्ञान किट्स प्रदान किए जाते हैं, इनको भली प्रकार रखा जाना चाहिए। यदि विज्ञान शिक्षण के लिए प्रयोगशाला उपलब्ध कराई जा सके तो और भी अच्छा है। इन प्रयोगशालाओं का आकार छात्रों की संख्या के अनुसार होना चाहिए।


Other

1. विद्यालय प्रबंधन की अवधारणा तथा उद्देश्य व कार्यक्षेत्र ।


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