बालक के समाजीकरण के प्रमुख कारक।

 

बालक के समाजीकरण के कारक

इस लेख में बालक के समाजीकरण को प्रभावित करने वाले कारक व बालक के समाजीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका वाले कारको के बारे में बतलाया गया है।

बालक के समाजीकरण के कारक-

1.सुझाव- सुझाव भी समाजीकरण का एक महत्वपर्ण कारक है। बालकों में बुद्धि की कमी और ज्ञान के अभाव के कारण सुझाव ग्रहणशीलता अधिक होती है। यही कारण है कि बालक सुझाव शीघ्र मान लिया करते हैं। बालक समय-समय पर अपने माता-पिता, भाई-बहिनों, मित्रों, सम्बन्धियों और गुरुजनों आदि के सुझाव प्राप्त करते हैं। यह सुझाव उनके ज्ञान की वृद्धि ही नहीं करते हैं बल्कि उनके समाजीकरण में भी सहायक होते हैं। सुझाव व्यक्ति के विचार, अभिवृत्ति, वेशभूषा और रहन-सहन के ढंग को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।


2. अनुकरण- अनुकरण एक महत्वपूर्ण कारक है। बालक अनुकरण के द्वारा भी अपने समाज और संस्कृति के सम्बन्ध में सीखता है। सर्वप्रथम नवजात शिशु अपनी माँ के व्यवहार के कुछ पहलुओं का अनुकरण करता है फिर परिवार के अन्य सदस्यों का अनुकरण करता है। बालक अपने माता-पिता, भाई-बहिनों, बाबा-दादी, नाना-नानी, मित्रों, गुरुजनों तथा अन्य सम्बन्धियों की किसी न किसी बात का अनुकरण करता है। अनुकरण के द्वारा भी वह भाषा और व्यवहार कीअनेक बातों को सीखता है। अतः अनुकरण समाजीकरण का सहायक कारक है।


3. सहानुभूति- समाजीकरण में सहानुभूति का महत्वपूर्ण हाथ है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी के प्रति सहानुभूति अवश्य प्रकट करता है। सहानुभूति बालक को अनेकों संवेगों, भावनाओं और प्रेरणाओं को सीखने में सहायक करता है। सहानुभूति के सहारे बालक अनेक मानवोचित व्यवहारों को सीखता है और समाज का सबसे अच्छा सदस्य बनने का प्रयास करता है। जीवन के आरम्भ में बालक की सहानुभूति केवल माँ तक ही सीमित होती है, परन्तु विकास के साथ-साथ सहानुभूति का क्षेत्र भी विकसित हो जाता है।


4. प्रशंसा और निन्दा- प्रशंसा और निन्दा दोनों ही समाजीकरण में सहायक हैं बालकों में यह सामान्य प्रवृत्ति पाई जाती है कि वे प्रशंसित कार्यों की ओर अधिक ध्यान देते हैं। इन कार्यो को करने और सीखने का अधिक प्रयास करते हैं। थार्नडाइक का प्रभाव का नियम इन बातों का समर्थन करता है। विन्टर बाटम ने इस समस्या का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला कि मौखिक प्रशंसा के साथ बालकों को चुम्बन और प्यार करने से उनका समाजीकरण शीघ्र होता है। 

विन्टर नें तीन प्रकार के दण्ड का भी वर्णन किया है, (1) डॉटना और चपत लगाना, (2) निराशा को प्रदर्शित करके झिडकना, (3) सुविधाओं में कटौती करना। 

मैकीनन के अनुसार सामाजीकरण के प्रशिक्षण में शारीरिक दण्ड की अपेक्षा मानसिक दण्ड अधिक प्रभावशाली है। हरलॉक के अनुसार प्रशंसा से समाजीकरण का विकास सामान्य ढंग से होता है।


5. स्वीकृति तथा अस्वीकृति- जब बच्चा समाज द्वारा मान्य तरीकों से व्यवहार करें तो स्वीकृति देनी चाहिए इसी प्रकार से बुरे कार्यों के लिए अस्वीकृति देनी चाहिए। स्वीकृति और अस्वीकृति की सहायता से बालकों में सामाजीकरण सामान्य ढंग से चलता है। बालकों को इस बात का प्रशिक्षण देना चाहिए कि वे केवल समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहार प्रतिमानों को ही अपनायें जिससे कि उनका सामाजीकरण सामान्य ढंग से हो। अत: स्वीकृति और अस्वीकृति भी सामाजीकरण के महत्वपूर्ण कारक है।


6. मजाक उड़ाना- मजाक उड़ाने का भी समाजीकरण पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यह एक प्रकार का दण्ड है। जब किस बुरे या बेढंगे कार्य के लिए बच्चों का मजाक उड़ाया जाता है और लज्जित किया जाता है तो वह दुबारा बुरे और बेढ़गे कार्यों को करने में संकोच करते है। बच्चों का अधिक मजाक भी नहीं बनाना चाहिए क्योंकि हो सकता है अधिक मजाक से बच्चे बेशर्म हो जाएँ और उन पर मजाक बनाने का विपरीत प्रभाव पड़े। फलत: उनका समाजीकरण असामान्य हो सकता है। बच्चों के मित्रों के सामने उनका परिहास विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है।


7. स्वास्थ्य- बालक का समाजीकरण स्वास्थ्य पर भी निर्भर करता है। स्वस्थ बच्चो में समाजीकरण प्रक्रिया तीव्र गति से चलती है और अस्वस्थ बालकों में समाजीकरण की प्रक्रिया अपेक्षाकृत मन्द गति से चलती है तथा विकृत भी हो सकती है। यह देखा गया है जो बालक स्वस्थ होते हैं वह खूब घूम फिर सकते हैं। उनकी मित्र मण्डली बड़ी होती है। ऐसे बालक समाज के अन्य व्यक्तियों से जल्द घुल-मिल सकते है। 

अत: इस अवस्था में बालक का समाजीकरण जल्दी होना स्वाभाविक है। अस्वस्थ रहने के कारण जो बालक घर से बाहर कम या नहीं निकलते है. वे दूसरों से जल्द घुल-मिल नहीं पाते हैं। बहुधा यह देखा गया है कि लम्बी अस्वस्थता के कारण वे अन्तर्मुखी प्रवृत्ति के हो जाते हैं। अत: हम कह सकते है कि बालक का स्वास्थ्य उनके सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।


8. शारीरिक बनावट- बालक की शारीरिक बनावट भी उनके समाजीकरण को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, जो बालक जन्म से या बचपन से अन्धे, लंगड़े, बहरे, गूँगे या लुले हो जाते हैं, इस प्रकार के बालकों का समाजीकरण, सामान्य ढंग से नहीं हो पाता है। असामान्य समाजीकरण के दो कारण है- प्रथम तो यह कि अगों के अभाव में बालक समाजीकरण के उन सभी अवसरों को प्राप्त नहीं कर पाते हैं, जो एक सामान्य बालक को प्राप्त होते हैं। अतः वे अन्य बालकों की अपेक्षा समाजीकरण में पिछड़े रहते हैं। 

दूसरे यह कि अंगो की विकृति या अभाव के कारण उनमें हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है। यह हीनता की भावनाएँ उन बालकों के समाजीकरण में बाधाक होती है। शारीरिक रूप से स्वस्थ बालकों को समाज भी अच्छी दृष्टि से देखता है। अक्सर इन्हीं लोगों के लिए समाज की तमाम प्रतियोगिताएँ होती हैं और इन्ही बालकों के लिए अवसर और सुविधाएँ अधिक होती है। अतः स्वाभाविक है कि स्वस्थ बालकों का समाजीकरण जल्दी होता है। 

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1. समाजीकरण का अर्थ, परिभाषा व विशेषताएं तथा प्रक्रिया। 










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